आ मैं तुझसे शरारत कर लूं , थोड़ी सी तुमसे मोहब्बत कर लूं ,
आ तेरी उलझी लट संवार दूं, तेरे बालों में गजरे का हार पहना दूं ।
तेरे लबों से चुरा कर के लाली , अपने लबों का प्यार दूं ,
आ तुझे छुपा लूं मैं आगोश में , कुछ करूं शरारत तुम संग ,
कुछ चुरा लूं शोख बदन की शोखियां तेरे , कुछ अपने तन- मन
का भी तुमको उपहार दूं ।
ना देखना तुम ज़माने को , ना मैं नज़र उधर घुमाऊंगा ,
तुम डूब जाओ मेरी निगाहों में, मैं तुम्हारे नैनार्णव में डूब जाऊंगा ।
पीएंगे हाला के घूंट एक - दूजे के लबों की, समा कर हम तुम एक - दूजे में,
शरारत के कुछ पल चुरा कर के , खो जाएं एक - दूजे में ।
आ महक तेरे बदन की लेकर मन अपना महकाऊं मैं,
बन जाऊं मैं चांद तेरा,चांदनी तुझ पे लुटाएं मैं ।
कभी जुदा ना हो तुम मुझसे इस कदर तुझ पर मोहब्बत लुटाऊं मैं,
आ फलक के सितारे भी तेरी मांग में सजाऊं मैं ।
आ मेरी महबूबा कर कुछ ऐसी शरारत कि सुध-बुध अपनी बिसराऊं मैं ।
आज हटा दो पर्दा लाज- शर्म का , तुझे प्यार की चुनरी औढ़ाऊं मैं ,
आ तेरे रूप की पूजा करूं मैं , बांहों के तुझे हार पहनाऊं,
जल उठे तन- बदन तुम्हारा ऐसी कोई शरारत कर जाएं ।
बनो तुम धरा प्यासी , काली घटा बन जाऊं मैं, उमड़-घुमड़ कर आऊं,
तुझ पर नेह - मेह बरसाऊं मैं ।
मौलिक एवं स्वरचित
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर )
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