पूनम का चांद
पूनम का चांद हो और साजन का साथ हो, फिर कैसे ना उठे मन में अरमानों का उफ़ान जब हाथों में साजन का साथ हो, कुछ लम्हें हो इंतज़ार के, कुछ में मुलाकात हो ।
देहरी पर बैठे हैं आस का दीपक जलाए, क्या मालूम कब वो भूले से ही मेरी गली आ जाएं, जो चले गए थे यूं तन्हा छोड़कर, इश्क की आग में झोंक कर ।
ए चांद जा कहीं से मेरे चांद को भी ढुंढ के ले आ, तेरे जैसा ही है मेरे चांद का भी मुखड़ा, जा तुझे तेरी चांदनी की कसम, जा तुझे मेरी आहों का वास्ता।
मिले जब चांद मेरा तो शब-ए-हिज्र ब्यां करना, कहना याद में यार की तड़पते हैं, शब-भर तारे गिना करते हैं, हाल ज़ख्मे-दिल का सुना के बस इतनी इल्तज़ा करना, बस एक बार मिलने की दुआ करना।
ना आएं तो कहना इक बार मैयत पे आ जाएं मेरी, रूह को तो मिल जाएगा सुकून-ओ-चैन, रह जाएगी यहीं कदमों में उनके, छोड़ खुदा का घर बुतखाने की चाकरी भी कबूल होगी, क्योंकि तब मोहब्बत मेरी मक़बूल होगी ।
मौलिक एवं स्वरचित
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)
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