मेरा सपना होली के रंगों से रंगा जहां
होली हमारे राष्ट्र की छवि और संस्कृति को दर्शाता है। होली रंगों और खुशियों भरा रंगीला त्योहार। मस्ती से ओतप्रोत, गिले-शिकवे मिटाते हुए, सभी एक ही रंग में रंग जाते हैं। कोई हो काला या गोरा, सावंला,सभी के चेहरों पर केवल गुलाल का रंग ही नज़र आता है, होली सच्चाई और अच्छाई का प्रतीक त्योहार है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जिसमें लोग नाकारात्मक विचारों की आहुति देते हैं और भाईचारे के रंग और गुलाल से खेलते हैं, जो हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का सबक सिखाता है। होली का त्योहार सबको करीब लाता है, और उन्हें सद्भाव से मिल-जुलकर रहना सिखाता है। हर घर में विशेष व्यंजन एवं पकवान बनाए जाते हैं, लोग सफेद कपड़े पहन कर होली खेलना पसंद करते हैं, लेकिन सफेद कपड़े पहने विधवा को होली खेलने की इज़ाजत नहीं।
ऐसा क्यूं?
क्या विधवा के अरमान नहीं? क्या विधवा होना अभिशाप है? क्या कोई भी नारी चाहेगी कि वो विधवा हो? जब एक पुरुष स्त्री के ना रहने पर सामान्य जीवन जी सकता है तो नारी क्यों नहीं, विधवा को भी अपने सफेद कपड़ों पर भी रंग लगाने का हक हो।
कुछ लोग इन पवित्र रंगों की आढ़ में रिश्तों की मर्यादा का ख्याल ना रखते हुए इसे अपवित्र बना देते हैं। कोई किसी को छूने के बहाने रंग लगाते हैं, रंगों के बहाने से स्त्री के अंगों को छूना, उसे गले मिलने के बहाने कस के भींच लेना, कुछ तो शोर-शराबे का फायदा उठाकर किसी मासूम की इज्ज़त तक तार-तार कर देते हैं। ये कैसा समाज, होली पर एकता का ढोंग रचने वाले समाज के ठेकेदार, जब ऊंच-नीच में भेद करते हैं, छुआछूत को मानते हैं, ग़रीब-अमीर में फर्क, हिन्दू-मुसलिम में भेद मानते हैं, फिर एक दिन कैसे वो एकता और भाईचारे का राग अलापते हैं, जब इश्वर ने हर इन्सान के खून का रंग एक बनाया फिर भी इन्सान एक रंग में क्यूं नहीं रंगता?
क्या यही है होली का मतलब?
होली का मतलब है, खुशियों के रंग में रंगा जाए एक-दूसरे को, बुराई का अंत किया जाए। पूछिए उस कुवांरी कन्या से रंग लगाने के बहाने जब कोई उसके अंगों को छेड़ जाता है, कोई पूछे उस मां से जब मोहल्ले में होली का संगीत ऊंचे स्वर में बज रहा हो, जब ढोल-नगाड़ों का शोर हो, पुरजोर मस्ती में हर कोई रंगों से सराबोर हो, और उस वक्त कहीं किसी कोने कोई वहशी- दरिंदा उसकी मासूम बेटी की इज्ज़त को तार-तार कर रहा हो, क्या हस्र होगा उस मासूम का क्या बीतेगी उस मां पर।
आखिर कब तक स्त्री प्रताड़ना को सहती रहेगी, काश कोई तो हो जो इस बुराई को भी होलिका दहन की अग्नि में भस्म कर दे, कोई तो हो जो ऐसे दरिंदों को सज़ा दिलवाए, इस सुन्दर संसार को इंद्रधनुषी रंगों से सजाएं, भाईचारे का नया कोई रंग सब पर चढ़ाए, बुराई का अंत करके अच्छाई का नया राग सुनाए, काश कोई आए ऐसा सपनों का जहां बसाए, इस जहां को होली के रंगों से रंग जाए ।
प्रेम बजाज
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.