हमारा देश एक स्वतंत्र देश है, महिला सशक्तिकरण की बहुत बड़ी- बड़ी बातें होती हैं, महिलाओं के लिए अनेकों कार्यक्रम भी किए, दिखाएं जाते हैं, जिसमें महिला को पुरुष के बराबर का दर्जा दिया है, जिसमें महिलाओं को एक ऊंचा ओहदा-- मां, बहन, बेटी, देवी अर्थात पूज्य बताया गया, फिर भी आज मेरे देश की महिला पुरुष के हाथों प्रताड़ित हो रही है।
क्यों?
क्या कोई ऐसे दरिंदों को सज़ा नहीं दे सकता?
क्या उनको दी गई सज़ा किसी दूसरे के लिए सबक नहीं बन सकती?
अभी हाल ही में दो दिन पहले एक खबर पढ़ी , 33 साल के पुरुष ने 66 साल की बुजुर्ग महिला के साथ हैवानियत की सारी हदें पार कर दी।
महिला को बेहरमी से मौत के घाट उतार दिया, उसका गला दरांती से काटा और पेट में कम से कम 25 बार चाकू घोप कर पेट फाड़ दिया और दोनों पैर काटने की कोशिश की गई।
दरिंदे की दरिंदगी की हद देखें हत्याकांड से पहले उस बुजुर्ग का बलात्कार किया उस दरिंदे ने।
बुज़ुर्ग महिला का बड़ा बेटा गांव में रहता है, छोटा बेटा और पोते के साथ राजधानी दिल्ली में किराए पर रहती थी, बेटा नोयड में नौकरी करता है, पोता स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ता है, महिला घर के पास ही सब्जी बेचने का काम करती थी, बेटा सुबह नौकरी पर चला गया, स्कूल की छुट्टी की वजह से पोता दादी के साथ सब्जी की रेहड़ी पर चला गया और महिला 12 बजे घर खाना बनाने गई, लेकिन जब बेटा घर खाना खाने आता है तो मां को नग्न अवस्था में एवं खून से लथपथ देखा तो चीत्कार कर उठा दिल उसका, चीख-चीख कर दुहाई देने लगा मां के प्राणों की।
मगर, मगर मां तो ठंडी हो चुकी थी। बेशक दोषी को गिरफतार किया गया, केस चलाया जाएगा, ना जाने कब तक केस चले, कब उसे किए की सज़ा मिलेगी लेकिन,
क्या उस ग़रीब की मां वापस आ पाएगी?
क्या वो ग़रीब केस लड़ पाएगा ?
क्या उसके सर की जो छत( आसरा) छीनी है, वो उसे कोई देगा?
क्या उस दरिंदे के एक बार भी हाथ नहीं कांपे इस दरिंदगी से एक जान-प्राण को खत्म करते हुए?
क्या कोई उस दरिंदे को उस मज़लूम के दर्द का कोई एहसास दिला पाएगा?
नहीं !
नहीं हो पाएगा ये सब !
कब थमेगा ये कहर दरिंदों का, औरत को बराबर का कहने वालों, औरत को देवी कहने वालों, औरत कौन पूज्य बताने वालों, कहां है वो देवी या पूज्य ?
केवल महिला सशक्तिकरण की बातें करने से महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं होगा, केवल देश में बदलाव लाने की बात करने से बदलाव नहीं आएगा। इसके लिए कड़े से कड़े कानून बनाने होंगे, हर शख्स को औरत की अहमियत को समझना होगा, उसकी इज़्ज़त करनी होगी।
दोषी को समय पर ही सज़ा मिले, और ऐसी सज़ा दी जाए जिससे देखने -सुनने वाले को भी सबक मिले, तभी होगा दरिंदगी का अन्त।
"आओ मिलकर आवाज़ उठाएं, इन वहशी दरिंदो के ख़िलाफ़ एक मुहिम चलाएं"!
प्रेम बजाज
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