हिजाब हो ना हो मगर भविष्य सुरक्षित हो

हिजाब चाहे रहे या ना रहे मगर बच्चियों की पढ़ाई जारी रहे।

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prem bajaj
prem bajaj 01 Mar, 2022 | 1 min read




कर्नाटक के एक कालिज से शुरू हुआ हिजाब विवाद नित नया रूप ले रहा है। किसी ने इसे संवैधानिक अधिकार बताया तो किसी ने शिक्षण संस्थानों पर धार्मिक प्रतीकों का पहनना सही तो किसी ने ग़लत बताया।

बहुत से ऐसे देश भी है जहां बरसों से सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अर्थात चेहरा ढकने पर रोकथाम लगा दी गई एवं नियमों का उलंघन करने पर हर्जाने का भी प्रावधान है।

 

11 अप्रैल 2011 को सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने और इस्लामी नकाबों पर प्रतिबंध लगाने वाला फ्रांस पहला युरोपीय देश बना। उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति सारकोज़ी निकोला हुआ करते थे, उनका मानना था कि पर्दा महिलाओं पर अत्याचार के समान है।

 एवं जुलाई 2011 में ही बेल्जियम में भी सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लगाया गया। नवम्बर 2016 में नीदरलैंड में सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने वाले इस्लामी नकाबों का समर्थन किया ।

दिसंबर 2015 में इटली में चेहरा ढकने को लेकर सहमति बनी लेकिन यह पूरे देश में लागु नहीं है। जर्मनी, आस्ट्रेलिया, नार्वे, ब्रिटेन, अफ्रीका इत्यादि अन्य देशों में भी सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब की मनाही है।

अफ्रीका में 2015 में कई बुर्काधारी महिलाओं ने बड़े आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया।

लेकिन अब कर्नाटक में फिर से हिजाब विवाद छिड़ गया। जिसमें कुछ लोग इसके समर्थन में आगे आए और कुछ इसके विरोध में भी। कुछ छात्रों ने भी भगवा शालें पहन कर प्रदर्शन किया।


 कुछ छात्राओं ने तो हिजाब निकालकर क्लास में प्रवेश किया, मगर कुछ हिजाब ना निकालने की जिद लेकर परीक्षा ना देकर घर वापिस मुड़ गई। 

तो क्या इसे पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा माना जाएगा?

कुछ लोग इसे धार्मिक अभिव्यक्ति की आज़ादी और स्कूल युनिफोर्म कोड से जोड़कर देख रहे हैं।

*हिजाब हो ना हो मगर स्कूल में लड़कियां हो*

ये बात पूर्णतया सही है कि हिजाब के चक्कर में लड़कियों की पढ़ाई में बाधा नहीं आनी चाहिए।

अपने घरों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई कैसी भी पौशाक पहने लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर उसे प्राथमिकता ना दे, जैसे कि स्कूल, कालिज इत्यादि जैसे स्थानों पर ड्रेस कोड ही सर्वोपरि होना चाहिए। जिसमें कि अमीर-गरीब, हिन्दू-मुस्लिम सब एक समान लगे, किसी के मन में भेदभाव ना पनपे। 


हमारा देश लोकतंत्र देश है, सभी को अपना जीवन‌ अपने तरीके से जीने का हक है, ये केवल सियासती दावं- पेंच होते हैं, कुछ लोग सत्ता में अपना सिक्का चलाने के चक्कर मे जात-पात, धर्म के नाम पर कोई ना कोई विषय को चुनकर तूल देते हुए अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं और भोली-भाली जनता उनकी बातों में फंसती जाती है, अहम मुद्दा बच्चियों की पढ़ाई का होना चाहिए ना कि हिजाब का। 

जो मां-बाप बच्चियों को खुलेआम बाहर नहीं भेजना चाहते, ऐसे मां- बाप हिजाब के बिना कैसे उन बच्चियों को बाहर जाने देंगे जहां कदम-कदम पर दरिंदे आंखें गड़ाए बैठे हो, जहां बच्चियों का घर से बाहर कदम रखने हर पल किसी खतरे की सूचना देता हो, ऐसे में वो बच्चियां घुट कर रह जाएंगी।

 क्या भविष्य होगा उन बच्चियों का, क्या वो स्कूल, कालिज जा पाएंगी? 

 इन सब में उन मासूम बच्चियों का भविष्य पिस रहा है।

हिजाब पहनना या ना पहनना ये खुद की मर्ज़ी पर निर्भर होना चाहिए, जैसे कि राजस्थान में घुंघट प्रथा के चलते अधिकतर स्त्रियां घुंघट निकलती है, सिख परिवार की स्त्रियां या लड़कियां पगड़ी पहनती हैं।

,‌सबकी अपनी-अपनी‌सोच एवं अपनी मान्यता होती है। केवल मानवता का हनन ना हो, इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। 

हिजाब होना चाहिए उन आंखों पर जो हर वक्त एक शिकारी की तरह मासूम लड़कियों के अंगों को ताकती हैं, हिजाब होना चाहिए उन लोगों के लिए जो हर पल किसी ना किसी मासूम को अपनी हवस का शिकार बनने की टोह में लगे रहते हैं।

अंत में इतना कहना चाहूंगी हिजाब हो या ना हो, किसी मासूम का भविष्य ना बर्बाद हो, किसी मासूम की अस्मत का ना हनन हो।



प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)






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