बदरी बांवरी

बरखा का मौसम और साजन का साथ

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prem bajaj
prem bajaj 10 Jan, 2022 | 1 min read

बदरी बांवरी 


ओ बदरी बांवरी इतनी ना बरसो कि प्रियतम मेरा आ ना सके, आ जाए प्रियतम तो इतना बरसो कि जैड मुझे वो जा न सके।


सावन की बदली सी बन कर तुम छाई हो, कितनी खिली और मुसकाई हो, ज़रा इतना बता दो क्या तुम भी साजन से मिल कर आई हो ?


 मैं भी तो अपने साजन के दीदार की प्यासी हूं, आलिंगनबद्ध करने पिया को उदासी हूं, पिया मिलन की पिपासी हूं।


ना इस बरस कर अगन मेरी बढ़ा तु, थोड़ा रूक करा के मिलन पिया से तन - मन की आग बुझा तु, ठंडी इन फुहारों से मन की आग और बढ़ जाती है, मन के साथ जो तन को भी जलाती है।


बता क्या तुम मेरे पिया से मिल कर आई है, तो गले तुझे लगाऊं मैं, क्या तु प्रियतम को छू कर आई है, उसकी सांसों की खुशबू भी साथ लाई है,तुझ पे सौ जान से वारे जाऊं मैं। 


छू कर के तुझे पिया का अहसास होगा, आलिंगन होगा जब तेरा -मेरा तो लगता पिया पास होगा, आ तुझे इस तरह गले लगा लूं , वो ना भी आया तो मेरे लबों पे तेरी बूंदों का वास होगा।


 प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर )

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