होली के रंग साजन के संग
परिनीति की शादी आलोक से दिसम्बर माह में हुई, आलोक का जिगरी दोस्त शादी में कनाडा से आया हुआ था,उसे परिनीति की बहन शोभना भा गई। परिनीति की शादी के बाद शोभना का भी रिश्ता तय हो गया, चट मंगनी पट शादी, होली के पंद्रह दिन बाद शादी तय हो गई, परिनीति का कोई भाई नहीं है, तो पिता ने बेटी दामाद से शादी की तैयारियों में हाथ बंटाने को कहा, "बेटा मैं अकेला इतनी जल्दी शादी की तैयारियां कर नहीं पाऊंगा, तुम लोगों को साथ देना होगा""
तो आलोक बोले, "साॅरी पापा मार्च क्लोज़िंग है,ज्यादा छुट्टियां मिल नहीं पाएंगी, परिनीति को होली से 15-20 दिन पहले छोड़ जाऊंगा, वो आपकी मदद करेगी, मैं आता-जाता रहुगा, आप चिन्ता ना करें, हम मैनेज कर लेंगे"
परिनीति की पहली होली, वो भी बिन साजन, मन बैचैन सभी होली खेलने को कहते हैं,मगर वो सिर दर्द का बहाना करके बाहर होली खेलने नहीं जा रही।
लेकिन थोड़ी देर बाद शोभना दौड़ी आई," दीदी चलो मेरे ससुराल से होली खेलने आए हैं, आपको भी बुला रहे हैं"
मन ना होते हुए भी उठकर बाहर आई तो मानों कोई सपना हो जैसे, आलोक ने झट से परिनीति को पकड़ कर रंग से सराबोर कर दिया, और परिनीति तो मानो जैसे फूली नहीं समा रही थी , पहली होली का रंग साजन के संग, पूरा दिन धमाल मचाया, नाच-गाना, हुड़दंग, रंगों की बहार थी। बाद में पता चला कि ये जीजा-साली की मिलीभगत थी, परीनीति को सरप्राइज देना चाहते थे।
मौलिक एवं स्वरचित
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)
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