मैं ठीक नहीं हूं

स्त्री की विडम्बना

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prem bajaj
prem bajaj 04 May, 2021 | 1 min read



हां मैं ठीक हूं, कुछ नहीं हुआ मुझे।

आरती अक्सर यही कहती, जब भी उसकी दोस्त रीटा उससे पूछती, लेकिन रीटा उसकी परेशानी जानकर ही रहती‌। दोनों पिछले चार साल से एक ही आफिस में जॉब करते हैं, आरती जब भी किसी परेशानी में होती, रीटा झट से पहचान जाती, और मिनटों में उसकी समस्या का हल निकाल के ही दम लेती। लेकिन इस बार आरती बहुत ज्यादा ही परेशान थी, लेकिन उसने कभी किसी को अपना दुःख बताया नहीं था।

क्योंकि उसे सुनने और समझने वाला कोई भी नहीं था, कभी उसने अपनी परेशानी के बारे में कोई बात करनी चाही तो पति ने यह कह के चुप करा दिया," तुम्हें तो हर बात में प्रोबलम नज़र आती है, हर समय तुम स्त्री मां यही कहोगी कि ठीक नहीं हो, ना जाने ऐसा क्या है , कभी तो कोई स्त्री कहें कि वो ठीक है"!

क्या करती किसे कहे, बस अब तो हर पल यही आदत सी बन गई थी, "कि मैं ठीक हूं" चाहे कितनी भी तकलीफ़ हो, आरती कभी ना कहती कि "मैं ठीक नहीं"

लेकिन इस बार उसका मन चीख-चीख कर कह रहा था कि कुछ ठीक नहीं, लेकिन उसकी सुने कौन।

उसने पति से कहा भी कि उसका देवर उसे बार-बार परेशान करता है, किसी ना किसी बहाने उसे छूता रहता है, लेकिन पति ने फिर वही बात कह कर चुप करा दिया कि तुम्हें तो हर बात से प्रोब्लम है।

और इस तरह देवर कुछ मनमानियां बढ़ती जा रही थी। आखिर एक दिन वही हुआ, देवर ने घर में अकेली पा उसका सर्वस्व लूट लिया, रोती-बिलखती रही किसी ने ना सुनी,कोई उसकी बात मानने को तैयार नहीं था। इस बात को एक महीना बीत गया, मगर अब नतीजा सामने है, वो गर्भ से हो गई तो रीटा के प्यार से सहलाने पर फूट पड़ा उसके अन्दर का दावा, और वो बिलख-बिलख कर, चीख-चीख कर कर रही थी, " मैं ठीक नहीं हूं, मैं ठीक नहीं हूं, स्त्री हूं तो क्या मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हो सकती? मुझे भी तो दर्द होता है, मेरे भी तो अरमान हैं, मेरी भी कुछ इच्छाएं, कुछ आशाएं, कुछ उम्मीदें, कुछ आक्क्षांए है, मैं भी इन्सान हूं, कोई बेजान गुड़िया नहीं,! मुझे भी तकलीफ़ होती है, हां मैं ठीक नहीं हूं, मैं ठीक नहीं हूं"!


प्रेम बजाज


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