खरीदे हुए रिश्ते
"खरीदें हुए रिश्तों की उम्र नहीं होती,
गरीब के आंसू किसी को नज़र नहीं आते"
मासूम मुन्ना के हाथ में कागज़ का टुकड़ा है ।
"बापु दीदी ने ऐसा काहे लिखा"
रामलाल रोए जा रहा है, क्या कहे वो, क्या समझाए उस मासूम को।
उसके सामने वो दृश्य उजागर हो गए।
हरियाणा के यमुनानगर जिले के अन्तर्गत एक छोटा सा गांव मुस्तफाबाद।
रामलाल की पुरखों की ज़मीन थी जिसमे से अधिक ज़मीन मां की बीमारी के कारण साहुकार से क़र्ज़ के एवज में साहुकार ने हड़प ली।
अब थोड़ी स ज़मीन रह गई, रोजी-रोटी का जुगाड़ हो रहा था।
लेकिन ईश्वर भी शायद कुछ अनहोनी करने वाला था, इसलिए इस साल फिर से सूखा पड़ा, अभी पिछले साल साहुकार से ही धान और पैसा लिया, सोचा इस साल की फसल से लौटा देगा। मगर ये क्या ये तो अब के फिर से सूखा पड़ा।
कोई और रास्ता ना देख, फिर से साहुकार के पास जाता है।
"मालिक आज थोड़ा सा धान दे दो सुखा पड़ा है खेतों में फ़सल तो है नाहीं, इस बार भी राम जी नाही बरसे, सब सूखा पड़ा है, बच्चे भूख से बिलख रहे हैं"
"धान तो ले जा लेकिन पहले ही इतना कर्जा है तेरे सिर पे कब चुकाएगा, मुनिया की शादी कहां से करेगा, और तु कहता है मुन्ना को पढ़ाऊंगा, इस गरीबी में कैसे करेगा"?
" क्या करें सरकार राम भी तो रूठे हैं हमसे"
"तुझे कहा तो है मुनिया की शादी मुझ से करा दे बस उम्र ही तो थोड़ी ज्यादा है मेरी,और कोई ऐब तो नहीं मुझमें मगर तु सुनता ही नहीं, जा घर जा के सोच के आज ही बता दियो"
"जी मालिक सोचना ही पड़ेगा अब तो धान तो हुआ नाहीं सारा साल कहां से खाएंगे"
"अरी ओ मुनियां की अम्मा, अब तु ही समझा मुनियां को कहती है जमींदार से शादी नहीं करेंगी, अरी इत्ता बड़ा आदमी और कहती है मैं वहां खुश नहीं रह सकती, जरा बता तो का कमी है? अरी राज करेगी राज।
समझा ना इसको, मुन्ना को भी तो पढ़ाना है, जमींदार कह रहा है कर्जा भी माफ़ कर देगा और मुन्ना को भी पढ़ा देगा"
" पर मुनिया के बापु, जमींदार की उम्र भी तो देखो ना, मुनिया तो बच्ची लगे हैं उसके सामने, कहा वो 40 का, और कहां मुनिया अभी 20 की भी ना भई"
" अरी उम्र में क्या रखो है, राज करेगी छोरी, कर्जा माफ करके मुन्ना की पढ़ाई का भी तो पैसा साथ दे रहा है ना"
"बापु मेरे को तो वो खरीद रहा है, का मेरी खुशी खरीद लेगा ?
खरीदी हुई जिंदगी की उम्र ना ही होवे बापू"
सच कहती थी बिटिया हमने उसकी शादी करा दी
पर कभी खुश नहीं दिखी वो एक साल में ही सब खत्म हो गया ।
ज़ार -ज़ार रोए जा रहा है और उस कागज़ को चूमे जा रहा है।
जैसे उसमें बेटी नज़र आ रही हो ।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी (यमुनानगर)
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