चांद भी कर रहा अटखेलियां संग चांदनी के, बंजारा
मन भी मेरा सपनों के शहर सजन को ढूंढता है,
चांद कहीं से ढूंढ कर ला चांद मेरा, तेरे जैसा ही है मेरे
चांद का मुखड़ा।
जा तुझे चांदनी की कसम, मिले मेरा चांद तो शब-ए-हिज्रा ब्यां करना,
कहना याद में उसकी तड़पते हैं, हुआ ये मन बंजारा रे शब -भर तारों के शहर घूमता है।
एक तो शब-ए-हिज्रा, उस पर चांद का जलाना, उस
पर महबूब की यादों का सताना, किसे सुनाएं हम
अपना दर्द-ए-फ़साना।
चांदनी रात ये कहर ढाती है, पुराने ज़ख्मों को ये हरा
कर जाती है, ,चादर-ए-शब भी उस पर शूल चुभा जाती है।
ए चांद मत इत्तरा इतना तू अपने रूप पर, जब मेरा
चांद आएगा, तू ना आना नज़र वरना पछताएगा, मेरे
चांद के सामने तु फीका पड़ जाएगा, देख मेरे महबूब
को तू शरमाकर छिप जाएगा।
सुनाएंगे यार को, जो ढेरों फंसाने है दिल-ए-बेकरार में,
काश ये रात ना ढले, ना चांद छुपे, ना सूरज निकले,
जागूं शब-भर मैं उम्मीद-ए-विसाल-ए-यार में।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर )
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