मेरे घर का कोना, किस कोने को कहूं मैं सबसे अलग, सबसे न्यारा, सबसे प्यारा?
क्या उस कोने को कहूं सबसे प्यारा,जहां आई थी दुल्हन बन कर बैठ परिवार संग सब रीति-रिवाज निभाए थे, या उसे जहां फूलों भरी सेज पर साजन के संग सुनहरे सपने सजाए थे, भूलकर इस जहां को हम एक-दूजे में समाए थे।
या कहूं उस कोने को सबसे प्यारा जहां पहली कड़छी कहने पे सास मां के हांडी में बस हिलाई थी, बहु ने बनाया है ये, कह के सास परोसने लाई थी।
वो भी तो प्यार के सुकून का कोना है जहां बैठ प्रत्यक्ष ईश्वर के संग जोत के मन की जोत जगाई थी, वो कोना भी कितना पवित्र सा है, जहां उठ सुबह मां-पापा का आशिर्वाद लेने आई थी, वो कोना देता है सुहानी यादें जहां छोटी ननद संग घंटों बैठे बतियाती थी।
बेटा-बेटी के लिए सपनों से भरा प्यारा सा एक कोना सजाया था, जहां मेरे बच्चों ने पूरा बचपन बिताया था, उसी कोने में अब मेरे पोता - पोती खेलते हैं, बच्चों का बचपन वो हम सब उनकी शरारतों में देखते हैं।
नहीं कोई भी एक कोना मुझे अधिक प्यारा, घर के सब कोनों में जान मेरी बसती है, करके याद कुछ बीती यादें सुनहरी, अकेली बैठी भी कभी मैं हंसती हूं, सब यही मेरा छोटा सा प्यारा सा घरोंदा है, जो मुझे जान से ही अज़ीज़ लगता है, एक कोना ही नहीं सारा घर प्यारा लगता है।
प्रेम बजाज
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बहुत प्यारा
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