करती हूं आज भी याद वो पल, जब मां अपने हाथों से कौर खिलाया करती थी,
ना खाने पर कभी-कभी डांट भी लगाया करती थी।
हर बात को बड़े प्यार से समझाया करती थी,
अच्छा क्या है, बुरा क्या सब बतलाया करती थी।
करती हूं आज भी याद वो पल, जब प्यार से रख हाथ सर पर सहलाया करती थी,
हो जाती जब कभी तबीयत मेरी खराब, पूरी रात वो जाग कर बिताया करती थी।
करती हूं आज भी याद वो पल, आ बेटी मिल जा एक बार,
उदास है मन मेरा, आते थे संदेशे बार-बार, नहीं जा पाती थी,
मां समय नहीं पास मेरे, पड़े हैं बहुत सारे काम मेरे, मैं अक्सर यही सुनाया करती थी।
करती हूं आज भी याद वो पल, बार-बार फोन की घंटी बजती रहती थी,
उठा ना पाती मैं फोन, अंत में तंग आकर, मां सुना नहीं, फोन साइलेंट था, यही झूठे बहाने बनाया करती थी।
करती हूं आज भी याद वो पल, जाती कभी जब मैं मायके,
अनेकों पकवान बनाया करती थी, कुछ साथ ले जा थोड़ा सा,
ऐसा कह कर पैक कर के साथ दिया करती थी।
करती हूं आज भी याद वो पल जब, मायके से आते
हुए सबसे छुप कर मेरी मुठ्ठी रख लें चुपचाप,
कह कर कुछ मुड़े-तुड़े नोट थमाया करती थी।
करती हूं आज भी याद वो पल मेरे कानों की झुमकी मेरे बाद तेरी होगी,
अक्सर ऐसी बातें किया करती थी।
कौन करेगा प्यार इतना जितना मां किया करती थी,
हां वो मां ही तो थी, जो सच्चा प्यार किया करती थी।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
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