क्यूं रहते हो खामोश

खामोशी

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prem bajaj
prem bajaj 03 Feb, 2022 | 1 min read

क्यों रहते हो खामोश U


क्यों रहते हो खामोश तुम सदा, यही खामोशी तुम्हारी 

मुझे अखरती है, कभी तो कहो कुछ, कभी तो मुखर 

हो जाओ तुम, केवल सुनो ना मुझे,कभी तो अपनी 

बात कह जाओ तुम।


ग़र नहीं कोई गलती तुम्हारी तो बतलाते क्यूं नहीं, जहां 

होती हूं मैं ग़लत, तो जतलाते क्यूं नहीं। नहीं मैं खुद को 

नहीं, हर पल मैं बस तुम्हें ही सोचा करती हूं, तुम थोड़ा 

मुखर होकर तो देखो मैं भी सब समझा करती हूं।


कभी तो गिनों कमियां मेरी भी, कभी तो अपने हक का 

पूर्ण अहसास दो, कभी छू कर के मुझे, तुम्हारा

 होने का आभास दिला दो, तुझ में हूं मैं, ये विश्वास दिला दो।


थोड़ा मासूम दिल पर भी तरस खाया करो, दर्दे-दिल 

को यूं ना हर पल दबाया करो,करोगे गुस्ताखी कोई 

इससे तो ये नाफरमानी भी कर जाएगा, कभी तो अपने 

भी दिल के करीब जाया करो।


दिल की बस्ती में तुम बस जाओ, इन नैनों की हाला 

को पीकर, मदहोश तुम हो जाओ, आ तेरे ज़ख्मों पर 

लगा दूं मरहम, प्यार में जले शब-भर, मैं बाती बन 

जाऊंगी, दिया तुम बन जाओ।


जब किया है वादा, तो जान देकर भी निभाएंगे, तुझ 

पर जान अपनी कुर्बान कर जाएंगे, थोड़ा सा मुखर हो

 कि लफ़्ज़ों में सांस आ जाएगी, ये तड़पती, ठिठुरती 

रात पल में कट जाएगी।


प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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