कसम से

गज़ल

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prem bajaj
prem bajaj 27 Mar, 2021 | 1 min read


ये दिल नहीं धड़कता तुम बिन कसम से ,

है शब-ए-गम में तड़पता तुम बिन कसम से।



करवटें बदलते रहते हैं हम बिन तेरे सनम

बैरी चांद भी है जलाता तुम बिन कसम से ।


नज़र क्या करें हम तुम्हें , सब तुम्हारा है ,

अपना कुछ नज़र नाआता तुम बिन कसम से ।


लाख चिलमन हो यार का दीदार हो जाता है ,

इश्क है रूहानी कौन समझाता तुम बिन कसम से।


ग़ैर के आगोश में मचलते हैं हम शब- भर सनम,

 चिलमन कोकोई ना छु सकता तुम बिन कसम से ।


ना करो हमें बर्बाद तुम करके रूसवा मोहब्बत

 मर जाएंगे हम बे ख़ता तुम बिन कसम से ।


नज़रों के तीर चलाना सीखा है हमने तुमसे ,

नहीं किसी ने हमारा दिल जीता तुम बिन कसम से


 रकी़ब हमारे , तुम्हारी ख्वाबगाह में टहला किए

आंख से मेरे आंसू रहा छलकता तुम बिन कसम से


 यूं तो हम रहे चाहत सितारों और नज़ारों की भी

मगर कोई हमें नहीं समझता तुम बिन कसम से ।


जब देखा खुद को आईने में हमने पर्दा कर लिया,

किसी का ही चेहरा नहीं भाता तुम बिन कसम से ।

बंद लबों से बातें किया किए हरदम हम,

 कोई ना समझा अफसाना "प्रेम" का तुम बिन कसम से


चिलमन में रहती है *प्रेम*सदा ज़माने के डर से ,

कोई नहीं दीदार कर सकता तुम बिन कसम से ।



मौलिक एवं स्वरचित

प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर )

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