ज़िंदगी अगर किताब होती

ज़िंदगी का फलसफा

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prem bajaj
prem bajaj 29 Apr, 2022 | 0 mins read




होती ग़र ज़िंदगी एक किताब तो उसमें गज़ल लिखता मैं,

गज़ल के हर लफ्ज़ मे तुझे कह कर ग़ज़ल लिखता मैं,

तेरे गेसूं पर लिखता, तेरे होठों पर लिखता, तेरे कान की बाली पर लिखता मैं।

होती ग़र ज़िंदगी एक किताब तो उसमें तेरी नथनी पर लिखता, तेरे नैनों के छलकते सागर पर लिखता मैं,

तेरी बलखाती कमर पर लिखता तेरी कस्तूरी पर लिखता मैं।

मगर जिंदगी नहीं किताब ज़िंदगी तो है हिसाब और किताब,

इसमें वफ़ा और बेवफाई का होता है हिसाब, मेरी वफ़ा

पर तेरी बेवफाई पड़ गई भारी, जिसे आज जानती है ये दुनिया सारी।

माना तू है बेवफ़ा फिर भी इश्क की किताब में ज़िक्र मैं तेरा ही करता,

इश्क है मेरा अपना सच्चा तेरी बेवफ़ाई और अपनी वफ़ा लिखता।

हूं मैं आशिक तेरा, तुझमें ही मुझे है रब दिखता, हुस्न

को लिखता खुदा और पूजा बेहिसाब लिखता,

बुतकदा को मंदिर मस्जिद लिखता और सजदा बेहिसाब करता।




प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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