डूबता सूरज

डूबता सूरज

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prem bajaj
prem bajaj 12 Jul, 2021 | 1 min read



नील गगन में डूबता सूरज ब्यान कर रहा कहानी मेरे जीवन की,


बीत गई भोर अब तो ढल रही शाम जीवन की।


साफ निर्मल जल ये कहता ऐसी पाक-पावन कहानी मेरी,

ऐसी हूं मैं जैसे हो गंगाजल की रानी ।


ऊंचे-ऊंचे पेड़ ये सारे मेरे ऊंचे सपने थे,

कुचल दिए गए जिनके हाथों वो भी तो अपने थे,


नीला अम्बर कहता मेरे विष पान की कहानी को,

बिखरे अरमां मेरे जंग लगा जवानी को।


छोटा सा घर ये प्यारा मेरे प्यार की दास्तां सुनाता है,

अपना हो या कोई बेगाना सबको ये अपनाता है।


पेड़ों की ये जो परछाई है नज़र आ रही तुम्हें,

ये मेरे संस्कारों में पले-बढ़े मेरे अरमान हैं,


देखो तो कैसी मिलती-जुलती है कहानी हमारी,

जिसने घड़ा मुझे उसने ही तो प्रकृति की मिसाल ये रचाई।


देखो इस जल की चमक को चहुं ओर फैलाती उजियारा,

ये रौशनी जो है, ये जल रहा दिल - जिगर हमारा।


ढल रहा सूरज रह गई अब परछाई है,

कहानी ये मेरी है, ना किसी की पराई है।

©®


प्रेम बजाज, जगाधरी (यमुनानगर)

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