ना जाने क्या कहता है ये मासूम चेहरा,
कोई अनकही कहानी ब्यां करता है ये मासूम चेहरा।
लिए खारा पानी एक समुंदर सा है चेहरे पर, ना जाने कितनी शिकन की सिलवटें है चेहरे पर।
किसने छीना इस मासूम का बचपन है, किसने किया इसके बचपन का शोषण है, खेलने - खाने की उम्र है, काम का बोझ रखा सिर पर है।
तन पे कपड़ा ना सिर पे छत है, ठिठुरती सर्दी हो या तपती दोपहरी, मजदूरी करने को ये बाधित है।
तन सूखा मन भी कुमलाया सा है, होंठ है सिले हुए,बदन कंकाल का साया सा है।
पूस की रात में भी नंगे बदन बोझा ढोता है, झुलसती आग में पसीना बहाता है।
झुकाए चेहरा चुपचाप मजदूरी करता है,
दो रोटी टुक के लिए अपना बचपन बेचता है।
ए इनसां कुछ तो सोच ये भी इश्वर की ही नेमत है,
हक जीने का ये भी तो रखता है, मत छीनो बचपन इनका, ये भी प्यार का हक रखता है।
मौलिक एवं स्वरचित
प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर)
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