ख़्यालों में बनती है गज़ल

गज़ल

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prem bajaj
prem bajaj 08 Jun, 2022 | 1 min read





तुम आते हो जब ख्यालों में तो बनती है गज़ल,

चले जाते हो छोड़कर तब यही खलती है गज़ल।


तुम सो जाओ मेरे पहलू में मैं गुनगुनाऊं तुम्हें,

धीरे-धीरे संग मेरी सांसों के भी चलती है गज़ल।


जब ना करूं ज़िक्र तुम्हारा किसी मिसरे में तो,

नहीं बन पाती मुझे बेहिसाब चलती है गज़ल।


दिल के कूचे से निकलता है धुआं अरमानों का,

अश्रु बन पहुंचता है तो पलकों में पलती है ग़ज़ल।


जब तुम मिलाओ अपना क़ाफिया मेरे रदीफ से,

तब जाकर *प्रेम* से पूरी तरह संभलती है गज़ल ।



प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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prem bajaj

prembajaj

Comments

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  • Manoj Kumar Srivastava · 2 years ago last edited 2 years ago

    जब 'प्रेम' से लिखता है कोई चंद पंक्तियाँ, पायल की झनक सी छा जाती है गज़ल।

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