कौन हूं मैं

क्या कोई प्रश्न हूं

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prem bajaj
prem bajaj 19 May, 2022 | 1 min read


कौन हूं? क्या कोई प्रश्न हूं?


देख रही हूं अपने वजूद की लाशों को, कौन है इसकी वजह? कहीं मैं खुद तो नहीं? 

हां अपने वजूद को ढेर करने की वजह मैं खुद भी तो हूं, खुद के लिए ही एक प्रश्न हूं मैं।


कौन हूं? क्या कोई फूल हूं, या वो धरती जो फूलों और कांटों को जन्म देती है, या कोई उत्तर हूं किसी प्रश्न का या कोई वस्तु जैसे कोई भी किसी को सौंप दें।


कभी किसी की नज़रों में समाई जाती हूं, कभी किसी की नज़रों से गिराई जाती हूं।

कभी बन जाता कैसी परछाई मेरी, कभी मैं परछाई बन जाती हूं।


ना समझा कभी कोई मेरे फ़ल्सफ़े को, एक ऐसी अनबुझ पहेली तो नहीं,क्यों एक सवाल बन कर रह गई मैं।

मिले प्यार के बदले में प्यार क्यूं ये मेरा नसीब नहीं? कभी अर्श पर तो कभी फर्श पर ये मेरा नसीब तो नहीं।


विडम्बना कैसी है मेरे वजूद की अपनी लाश भी ना मैं पहचानती हूं,

बस-बस कर उजड़ती हूं, उजड़ कर बसंती हूं, जो नाम दिया जिसने उसी को बस जानती हूं।

देकर रोशनी खुद तमस का चोला ओढ़ती हूं, शबनम के कतरों सी ज़र्रा- ज़र्रा पिघलती हूं।


बनाया खुदा ने प्यार की मूरत मुझे, मगर प्यार पर मेरा अधिकार नहीं,

कैसे कह दूं ज़िन्दा हूं मैं, लाश हूं कैसे खरीदूं ज़िन्दगी, जीवन-मृत्यु व्यापार नहीं।


प्रेम बजाज ©®

जगाधरी (यमुनानगर)


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