आज कहने को स्त्री और पुरुष दोनों बराबर है,
मगर क्या यह हकीकत में ऐसा है?
क्या स्त्री को हर क्षेत्र में बराबरी का अधिकार है?
भ्रुण जांच कराया जाता है, और अगर बेटी है तो भ्रुणहत्या, और अगर गलती से जन्म ले भी लिया तो उसके बाद कभी पढ़ाई में अड़चन तो कभी नौकरी या व्यवसाय के क्षेत्र में, तो कभी दहेज ना दे पाने की स्थिति में शादी में अड़चन, तो कहीं प्रेम विवाह में अड़चनें आना, कहीं बाल विवाह करना, कहीं विवाह के नाम पर लड़कियों की खरीद-फरोख्त करना, अगर शादी अच्छे से हो गई तो बाद में बहु पर अत्याचार, कभी अगर मां नहीं बन सकी तो उस पर अत्याचार, कहीं पैतृक संपत्ति में कानून पास होने के बावजूद भी अधिकार का ना मिलना।
विवाह एक पवित्र बंधन है, जिसमें दो विपरीत चरित्र के लोग मिलते हैं तो उनमें प्रेम का रिश्ता पनपता है। जीवन के हर पहलू में दोनों का बराबर का प्रतिभाग होना आवश्यक है, लेकिन वहां आधिपत्य केवल पुरुष का, हर फैसले का हक पुरुष का, यहां तक कि अगर किसी वजह से पति-पत्नी का रिश्ता सुचारू रूप से नहीं चल पाता और नौबत तलाक तक आ जाती है तो भी तलाक का हक पुरुष का , स्त्री हक से तलाक नहीं ले सकती, हमारे समाज में जहां लड़कियों में आत्मविश्वास ही नहीं होता, वहां वो हर रिश्ते में दबी-दबी रहती है, और उनके सम्मान को कुचल दिया जाता है।
आज के युग में हम कितनी भी महिला सशक्तिकरण की बातें कर लें, कितना भी कह लें कि आज की स्त्री पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है, मगर ये सब कहने की बातें हैं, मात्र ढोंग हैं, माना कुछ हद तक महिलाओं ने अवश्य शिक्षा एवं नौकरियों के क्षेत्र में तरक्की की है, मगर उनकी गिनती बहुत कम है। सत्य ये है कि महिलाएं दबे, कुचले रूप में कार्य कर रही हैं। उनकी आवाज़ और उनके अस्तित्व में निखार नहीं आया । कुछ बालिकाएं ऐसी हैं जिनकी पढ़ाई छुड़वा दी जाती है, उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जाता, जिस कारण वो पिछड़ी, दबी, कम आत्मविश्वासी और निर्बल बन जाती हैं।
पुरुष प्रधान देश में पुरुष का ही सर्वस्व है, इसी कारण बस पुरुष की ही इज्ज़त है, अधिकतर सरपंच, मुखिया इत्यादि पुरुष है, अर्थात सरकार भी उन्हीं की, लाठी भी उन्हीं की, भैंस भी उन्हीं की। धार्मिक ग्रंथों में भी पति को परमेश्वर एवं देवता का स्थान दिया गया है। पुरुष प्रबल और महिलाओं को निर्बल बना कर समाज कभी तरक्की नहीं कर सकता, प्रभुत्व की दीमक समाज की नींव को खोखला कर जाएगी, ऐसे में देश का विकास असम्भव है। सभी को मिलकर ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे महिलाओं को बराबरी का हक मिले, चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो, नौकरी या घर में। इस तरह उनमें प्राकृतिक रूप से आत्मसम्मान उपजेगा, और वो जीवन में आने वाली मुश्किल को आसानी से पार करेंगी।
प्रेम बजाज
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