ना कीजे इश्क़ो- मोहब्बत की बातें ये बर्बाद करती हैं ,
नहीं रखती कहीं का ये कि खाना - ख़राब करती हैं ।
दास्तां- ए - खाना- वीरानी ना देख मेरा तुम रो दोगे
दिखा के बागे- बहिशत क़फ़स का आगाज़ करती है ।
दिले- बेताबी बढ़ी हद से तो तेरे करीब आ गए हम
शहरे-आरजु जवां है , निगाहें जमाल तरसती हैं ।
करके अज़्म चला गया ना देखा एक बार भी मुड़ कर
मगर मैयत मेरी अभी भी उसी का इंतजार करती है ।
दिले- दाग़दार का सबब ना पूछ हमसे कैसे जीते हैं
तस्वीर यार की खिलबत का आफताब लगती है ।
प्रेम बजाज
जगाधरी ( यमुनानगर)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.