लेखक कौन है?
लेखक अर्थात साहित्यकार।
समाज साहित्य से और साहित्य साहित्यकार से, ये तीनों ही एक - दूसरे जुड़े हुए हैं। जिस तरह अन्य सामाजिक प्राणी होते हैं, इसी तरह साहित्यकार भी सामाजिक प्राणी है लेकिन सामान्य नहीं बल्कि सर्वमान्य से हट कर संवेदनशील प्राणी है।
हमारे जीवन में जो भी प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से घटित होता है उसका न्यूनाधिक प्रभाव प्रत्येक प्राणी पर अवश्य होता है, और उसके प्रति सामान्य प्रतिक्रिया भी प्रत्येक प्राणी करता है, लेकिन उसकी गहन अनुभूति एवं सजग प्रक्रिया लेखनी द्वारा एक लेखक ही प्रकट करता है।
साहित्यकार को समाज और साहित्य के प्रति समान रूप से अपना दायित्व निभाना होता है।
साहित्यकार को स्वप्नद्रष्टता ही नहीं भविष्यदृष्टा भी माना जाता है, जो वर्तमान को सामने रख कर भविष्य की रूपरेखा तय करता है।
कहते हैं कि .....
*जब आता है उफ़ान दिल के जज़्बातों में,
उठा लेता है एक लेखक कलम हाथों में।
दिल को निचोड़ कर निकालता है शब्द,
बिन बोले बहुत कुछ कह जाता बातों में।
दिल के कागज़ पर अहसासों की कलम से,
लिखता है नज़्म, ऑंसु भर कर दवातों में*
जो बेजुबान को जुबान दें, जो समाज को नया आयाम दे, जिसे पढ़कर हर एक को अपनी कहानी लगे, जो दबे जज़्बातों को हवा दे, जो कह ना सका कोई लफ़्ज़ों में लेखनी से उसकी कहानी को ज़ुबां दे। जो बिना किसी के दबाव में, बिना शब्दों को छुपाए, बिना पक्षपात के लिखे।
जो लिखे #अमृता प्रीतम सा जिसने देश बंटवारे के समय तन-मन से बांट दी गई औरत का दर्द बेधड़क लिखा।
जो लिखे #इश्मत चुगताई जैसा, जिसने औरत की ख़्वाहिशो और अधिकारों को बेपर्दा किया।
जो लिखे #कृष्णा सोबती सा जिसने औरत की पहचान पर लिखने की जुर्रत की।
जो लिखे #मृदुला गर्ग जैसा जिसने अपने उपन्यास #चित्ताकोबरा में शादीशुदा औरत को ज़िन्दगी से असंतुष्ट दिखाया और औरत की इच्छाओं और सेक्सुअलिटी पर बात की।
जो लिखे #प्रेमचंद जैसा, आज़ादी से पहले का यथार्थ चित्रण जैसा प्रेमचंद के साहित्य में मिलता है ऐसा किसी भी लेखक के साहित्य में नहीं।
प्रेमचंद ने भारतीय ग्रामीण जीवन पर उपन्यास, गोदान, गबन, निर्मला इत्यादि एवं पूस की रात, नमक का दरोगा, बड़े घर की बेटी नामक कहानियों में यथार्थ चित्रण किया है।
लेकिन क्या आज के लेखक हैं ऐसे ?
कहते हैं लेखक एक स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र की नींव होता है।
लेखक समाज की सांस्कृतिक सामग्री में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
लेखक समाज को नई दिशा प्रदान करता है, किसी के सोए अहसास जगाता है, किसी पर हो रहे अन्याय के विरुद्ध कलम के जरिए आवाज़ उठाता है।
एक जागरूक साहित्यकार अथवा लेखक वही है जो समाज की नाड़ी को पहचाने और उसके उपयुक्त ही उसका शब्द रूपी उपचार करें।
जिस तरह वीणां में मात्र ऊंगली के स्पर्श से झंकार उत्पन्न होता है उसी तरह साहित्यकार का मन भी वीणां के सुक्ष्म तारों जैसा होता है जो समय और घटनाओं से प्रभावित होकर झंकृत हो उठता है। और उसकी यही झंकार कला और साहित्य के रूप में अवतरित होती है।
इतिहास गवाह है कलमकारों ने तख्त पलट कर रख दिए।
एक लेखक अपने लेख द्वारा इन्सान की सोच को बदल सकता है, हर इन्सान के अंदर क्रांति जगा सकता है।
लेखक वो जो हर शय को एक ही तराजू में तोले, समाज को आईना दिखाने, दिल और दीमाग के दरवाज़े खोल कर लिखे। शब्दों में अश्लीलता ना देख कर उसके मायने समझाए।
एक लेखक समाज में आदरणीय स्थान रखता है।
एक लेखक कलम और संस्कृति का अपमान नहीं कर सकता, लेखक समाज की रीढ़ की हड्डी होता है, अगर रीढ़ की हड्डी मजबूत होगी तो समाज भी अपने उसूलों पर अपनी प्रतिष्ठा पर मजबूती से टिका रहेगा।
लेखक वो होता है जो बिना अपना फायदा - नुकसान सोचे, बिना किसी भेदभाव के, समाज को उसकी असली सूरत दिखाते हुए, अन्याय के खिलाफ बेबाकी से आवाज़ उठाते हुए लिखे।
जब भी किसी देश या संस्कृति पर खतरा मंडराए तो साहित्यकार ही अपनी लेखनी द्वारा राष्ट्र, जाति एवं संस्कृति में नवप्राण संचार करता है, उसमे नई उर्जा, नया जोश भरता है।
लेखक और समाज के बीच एक गहरा और अटूट संबंध होता है।
अंत में इतना कहना चाहूंगी कि साहित्यकार के बिना साहित्य नहीं और साहित्य के बिना समाज नहीं।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
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