तेरे जैसा हाल
हाल मेरा भी कुछ तेरे जैसा है, मेरा अहसास भी तेरे अहसास जैसा है।
उठते हैं अरमान दिल में हज़ारों, जब सामने तुम आ जाते हो।
छू कर मुझे तुम आफताब से माहताब बनाते हो,
उठती है इश्क की ज्वाला तन-बदन में,
अनजाने से भी ग़र मुझे छू जाते हो।
यूं सरेआम ना किया करो ब्यान मोहब्बत अपनी,
ज़माने की नज़रों से डर लगता है,
मिलने ना दिया किसी ने, लैला-मजनूं को, ना हीर को रांझा का बनने दिया ,
बेदर्द है ज़माना ये सदा इश्क का दुश्मन हुआ करता है।
तेरे नाम सा लगता है आजकल हर नाम मुझे,
खुद का नाम भी मैंने तो इश्क रख लिया है,
शुरू होती हूं इश्क से, इश्क पर ही अंजाम अपना देखा है।
हां तु वही तो है, जिसे दिल में बसा रखा है, पलकों में छुपा रखा है,
सर का ताज बना रखा है,लहू में बसा रखा है, करती हूं सजदा खुदा का मगर ज़ुबां पे नाम तेरा सजा रखा है।
ना- आश्ना हुआ करते थे जो , आज उन्हें हमने अपना दिल-जिगर बना लिया,
बस गए वो सांसों में मेरी ,ए इश्क तुने आज हमें ये क्या दिन दिखा दिया।
है इल्तज़ा इतनी खुदा से जब दमे- आखिर हो, पलकें मूंदने से पहले तु आ जाए,
तेरी आगोश में निकले ये दम मेरा, तेरे शाने पे मेरा सर हो।
ना- आश्ना ( unknown)
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)
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