prem bajaj
prem bajaj 23 Apr, 2022
शाम
ना जाने इन ढलती शामों में कौन सी व्यथा है, मापा जीवन भर इन गहन ढलती शामों को, कितनी शामें गुजरी, कितनी व्याकुल है आने को, स्मृतियां भी हो जाती है व्याकुल मेरा संबल पाने को।

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by prembajaj

23 Apr, 2022

शाम

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