अगर मैं डाॅक्टर होता!

डाॅक्टर के कर्त्तव्य और अधिकार की कहानी।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 05 Jul, 2020 | 1 min read
Faith, promise Duty Doctor

"अगर मैं डाॅक्टर होता तो सबसे पहले अपने गांव में एक छोटा सा क्लीनिक खोलता और गांव के लोगों की निस्वार्थ सेवा करता", रमन की ये बातें आज रमाकांत जी को याद आ रही थी, जब गांव के मुखिया की मौत एक मामूली बीमारी से हो गई। गांव में अभी चिकित्सा के क्षेत्र में कोई बदलाव नहीं हुआ था। मशीनों और नये टेक्नोलॉजी के अभाव में अभी भी गरीब स्वास्थ्य लाभ नहीं उठा पा रहे थे।

रमन ने इस बात को गंभीरता से लिया और उसने बहुत मेहनत और लगन से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर डाॅक्टर बन गया। समय पर उसकी शादी भी हो गई लेकिन अब वह पहले वाला रमन नहीं रह गया। शहर के ऐशो - आराम और पैसों की चकाचौंध में खोकर अपना वादा भूल गया। उसने कम समय में ही बंगला, गाड़ी खरीद लिया और शहर के नामी-गिरामी हस्तियों में शामिल हो गया। रमाकांत जी को कितनी बार चिट्ठी लिखी कि वो भी उसके साथ आकर वहीं रहे। उन्हें यहां किसी बात की कमी नहीं होगी लेकिन रमाकांत जी के मन तो उनके गांव में ही बसा था। गांव का हर सदस्य उन्हें अपना परिवार लगता था। रमाकांत जी हर बार पत्र के उत्तर में गांव का हाल बताते, रामू की बीबी प्रसव के समय हुए इंफेक्शन से चल बसी। काश तुम यहां होते तो शायद ऐसा नहीं होता! वो बच जाती।

रमन हर बार यही उत्तर पढ़कर झुंझूला जाता और माया से कहता बाबूजी बहुत जिद्दी स्वभाव के हैं। अगर मैं गांव में चला जाऊंगा तो क्या ये एशो-आराम हमें मिल पाएगा? वो मेरी इस बात को समझते ही नहीं।

कुछ दिनों से बाबूजी के पेट में दर्द की शिकायत रहने लगी। गांव के डाॅक्टर को दिखाया तो गैस की समस्या बताकर उन्हें गैस की दवा लिख दी। दवा से कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि दिन ब दिन उनका स्वास्थ्य गिरने लगा।उनके गिरते सेहत की खबर लेकर गोपाल, ( उनका सेवक) रमन के पास पहुंचा। रमन तुरंत गांव गया और बाबूजी को अपने साथ ले आया। शहर लाकर उनका इलाज शुरू हुआ पता चला उनके आंत में इंफेक्शन हो गया है। डाॅक्टर ने बताया उन्हें लीवर का कैंसर हो गया है और वो भी लास्ट स्टेज में है। इलाज चलने लगा लेकिन दो - चार महीने बाद बाबूजी चल बसे।

अब रमन को हर समय बाबूजी की बात कचोटते रहती। सपने में भी बाबूजी यही कहते, "गांव लौट आ, देख रामू बहुत बीमार है उसका इलाज कर, ये उम्र उसने मरने की नहीं है। बचा ले उसे, कहीं पैसों के अभाव में वो मर न जाए।"

शहर में सबकुछ था लेकिन अब रमन की मन की शांति कहीं खो सी गई थी। बाद में उसे अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने गांव में बाबूजी के नाम पर एक अस्पताल खोल दी और कुछ डाॅक्टर वहां हायर कर दिया। जो सभी मरीजों का इलाज निम्न शुल्क पर करने लगे। 

रमन के मन की शांति वापस आ गई और वह भी सप्ताह में दो दिन गांव के मरीजों को देखने जाता। इस तरह बाबूजी का सपना भी पूरा हो गया और रमन का वादा









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