वार्ड कमिश्नर

नेताओं के वादे और बारिश से आम व्यक्ति के जीवन में होने वाले उथल-पुथल से रची गई ये छोटी सी रचना।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 18 Jul, 2020 | 1 min read

"सत्यानाश हो इस अनिल का", बरामदे में नाले से आए पानी को झाड़ू से निकालते हुए रत्ना जी ने कहा।

"क्या हुआ रत्ना ? क्यों उसे कोस रही हो?," कैलाश जी ने पूछा।

"अरे कोसु नहीं तो क्या करूं! जब वोट लेना था तो दिन - रात हमारी जी हुज़ूरी करता था। यहां तक की अपने घर के सामने खुदे हुए नाले की बिना कहे सफाई करवा देता था और अब देखिए जब वोट लेकर मोहल्ले का वार्ड कमिश्नर बन गया तो अब हमारी समस्याओं का निदान तो दूर सुनना भी नहीं चाहता।

जब वोट चाहिए था तो उसने मुझसे मेरी परेशानी पूछी थी तो मैंने उसके कहने पर अपनी समस्या बताई थी, " देखों बेटा तीन साल से हम ये नाले को लेकर बहुत परेशान हैं तुम तो देख ही रहे हो, पिछले वार्ड कमिश्नर ने यही वादा किया था कि वार्ड कमिश्नर बनते ही सारी समस्याओं का निदान कर देंगे और देख लो नाला का नक्शा तो नहीं बदला लेकिन उनके परिवार का नक्शा जरूर बदल गया। दो बंगले और गाड़ियां नाला बनवाने के पैसों से खड़े हो गए। बरसात के दिनों में तो हमारी स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि पूछो मत। बरसात के पानी से नाला भर जाता है और उसका सारा कचरा मेरे बरामदे में फ़ैल जाता है। हमने इससे निजात पाने के लिए अपने घर के सामने तो खुद ही नाला ढ़़कवा लिया लेकिन अब दूसरों का क्या करें? तुम ही बताओ। मोहल्ले के सभी लोग ही परेशान हैं।"

"अरे चाची आप निश्चिंत रहिए, मैं उन वार्ड कमिश्नर रमेश जैसा नहीं हूं। आप तो मुझे जानती है आपके बेटे जैसा हूं और ये समस्या सिर्फ आपकी नहीं हमारी भी तो है इसलिए तो कह रहा हूं आप लोग मुझे वोट दिजिए और वार्ड कमिश्नर बनाकर देखिए सारी समस्याओं का समाधान कर दूंगा। मुझ पर इतना भरोसा रखिए।" अनिल ने कहा था।

 "ठीक है बेटा! तुम पर भरोसा कर लेंगे आखिर और चारा भी क्या है। वादा करो कि वार्ड कमिश्नर बनने के बाद तुम इस नाले को पक्का कराकर सीमेंटेड करवा दोगे।"

" चाची जी मैं वादा करता हूं आपसे, विश्वास रखिए" अनिल ने कहा था और आज देखिए साहब के पास समय ही नहीं है और कभी रास्ते में मिल गए तो फंड ना मिलने की लाचारी और आश्वासन देकर निकल जाते हैं।

अरे रत्ना, नेता और अभिनेता की बात पर भी कोई भरोसा करता है क्या भला? ये लोग बस अपने फायदे के लिए ही कोई काम करते हैं। चलो मैं तुम्हारी सफाई में मदद कर देता हूं।

दूसरे दिन सुबह-सुबह कैलाश जी दूध लेकर वापस घर लौटे तो रत्ना जी को छेड़ते हुए कहा, "रत्ना कल तुम्हारा अनिल को कोसना काम कर गया।"

"हाय राम ... शुभ - शुभ बोलिए। मैंने तो गुस्से में बोला था। क्या हुआ? अनिल ठीक तो है ना? बताइए ना?"

"अरे ऐसा - वैसा कुछ नहीं हुआ है। अनिल बिलकुल स्वस्थ्य है बस थोड़ी सी चोट है जल्द ही ठीक हो जाएगा। फिक्र करने की कोई बात नहीं है।"

"फिर ठीक है लेकिन चोट कैसे लगी?"

"मैं आज दूध लेकर लौट रहा था तो रास्ते में शर्मा जी मिल गए थे। उन्हीं ने बताया कि कल अनिल मार्केट से घर वापस आ रहा था तो मिश्रा जी के घर के पास फिसलन से उसके मोटरसाइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह नाले में जा गिरा और मोटरसाइकिल नाले में ऐसी फंसी कि निकालने में पूरी तरह उस पर स्क्रैच आ गई है। इसलिए उसने निश्चय किया है कि बरसात खत्म होते ही वह सबसे पहला काम नाला बनवाने का करेगा।", हंसते हुए कैलाश जी ने कहा।

"जाके पाँव ना फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई" जब खुद पर बीती तब समझ आया, चलिए इसी बहाने हमारी समस्या का भी निदान होगा वरना मैं जिंदगी भर नाला ही साफ करती रह जाती", कहते हुए रत्ना जी घर के काम में लग गई।


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