बाबुल एक बार मुझे गले से लगा लो

पिता और बेटी के प्यार और टूटते - बिखरते रिश्तों की कहानी।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 09 Aug, 2020 | 1 min read

"प्रेम विवाह करना इतना बड़ा पाप है कि मुझसे शादी के आठ साल बाद भी परायों जैसा व्यवहार किया जा रहा है, मां आखिर कब-तक मुझसे नफरत करेगी। काश पापा होते तो वो मुझे जरूर माफ कर देते और मुझे और मनोज को अपना लेते। मां से अधिक उन्होंने हम बच्चों को समझा है" मीता दुःख में बड़बड़ा रही थी।

 आज मीता के छोटे भाई की शादी थी, आज मिथलेश दुल्हा बन दुल्हन को लेने जा रहा था। मीता ने अपनी भाभी और भाई के लिए सारी तैयारियां कर ली थी भाभी की मुंहदिखाई के लिए झुमके लिए थे और मिथलेश के लिए शेरवानी ली थी, मीता की खुशी का ठिकाना न था कि उसका छोटा सा भाई आज दुल्हा राजा बनेगा लेकिन अभी तक उसके ससुराल बुलावे की कोई खबर नहीं आई। आज उसकी नजरें दरवाजे पर टिकी थी जब भी डोरबेल की आवाज आती वो सब काम छोड़ दौड़कर दरवाजा खोलती और फिर निराशा हाथ लगती लेकिन उम्मीद न छोड़ी जा रही थी कमब्खत ये उम्मीद ना जाने कितनों को जीने नहीं देती, कभी तो उम्मीद ढ़ेरों खुशियां देती है तो कभी ढ़ेर सारे गम। आज मीता के साथ भी वही हो रहा था जैसे-जैसे दिन बीत रहा था उम्मीद की लौ धीरे-धीरे बुझती जा रही थी।

मीता का ससुराल, मायके के पास वाले मुहल्ले में था जहां से उसे लाउडस्पीकर पर गाने की आवाज भी सुनाई दे रही थी। मन में तो इतनी छटपटाहट हो रही थी कि बस कैसे भी वो वहां पहुंच जाती, एक एक रश्म की उसे अनुभूति हो रही थी और खुद से ही बड़बड़ाये जा रही थी। मनोज उसकी मनोदशा समझ रहा था लेकिन वो भी कुछ नहीं कर पा रहा था स्वत वह अतीत में खो गया , जब मीता ने मनोज के बारे में घर पर बताया तो हंगामा मच गया था लेकिन मीता के कहने पर मनोज और उसके पापा मीता के घर उसका हाथ मांगने गए तो उनका अपमान कर उन्हें घर से निकाल दिया गया था क्योंकि उनकी जात और स्टेटस में कोई मेल नहीं था। उस समय मीता के पापा - मम्मी ने साफ कह दिया था कि अगर उस लड़के से शादी करनी है तो खुद कर लो हम नहीं करेंगे उस लड़के से तुम्हारी शादी। उनके कहने पर मीता ने ये बड़ा कदम भी उठा लिया और घर वालों की मर्जी के खिलाफ जाकर दोनों ने शादी कर ली फिर तो मीता के घरवालों ने कभी मुड़कर उसकी तरह देखा ही नहीं कि वो किस हाल में हैं। सबने उससे रिश्ता तोड़ लिया लेकिन मीता हर पल उनको ही जीती रही।

दो साल पहले मीता के पापा चल बसे। अंत समय में वह मीता को देखना चाहते थे लेकिन उसकी मां ने उसे घर की दहलीज पर आने नहीं दिया। अब तो ऐसा लगता है कि शायद ही वो हमें माफ करेंगे। "सुनो.. सुनो कहां खोए हो?" मीता ने मनोज के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला। "अरे कहीं नहीं तुम बताओ क्या कह रही हो?"

"आपको मिथलेश का फोन आया था क्या?"

"नहीं मीता मुझे तो कोई फोन नहीं आया। मीता तुम्हारे घर वाले हमें नहीं बुलायेंगे, तुम इतना मत सोचो जाओ आराम करों।"

" कैसे न सोचूं, मैं बड़ी बहन हूं मुझे तो ही बहुत से रश्म करने हैं, मेरे बिना कौन..", इतना बोलते ही गला भर आया उसका और बाकि आंखों से बहते हुए आँसू ने सबकुछ कह दिया।

सुबह से रात हो गई और साथ ही साथ मीता की उम्मीदों ने दम तोड़ दिया। मीता रोते-रोते यही कह रही थी पापा मुझे माफ़ कर दो, एक बार मुझे गले लगा लो .. मां मुझे अब तो गले लगा लो...। शायद अभी बहुत लंबा इंतजार लिखा था उसके नसीब में अपनों का प्यार और सम्मान को वापस पाने में.............


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