हंसमुख चेहरा, हमेशा सबसे मिलना - जुलना, दूसरों की मदद करना, मानव का स्वभाव था। एक महीने पहले ही मेरे बगल वाले फ्लैट में दो दोस्तों के साथ रहने आया था। हम पति-पत्नी अकेले ही रहते थे। एक बेटा था जो विदेश रहता था। जिस दिन मानव शिफ्ट हुआ था उसी दिन मुझसे पीने का पानी लेने आया, इस तरह हमारी जान - पहचान हो गई थी। जाने उसकी बातों और चेहरे में क्या आकर्षण था जो उन तीनों लड़कों में से उसे अलग करता था। बिलकुल अपना सा लगता था। जबसे शर्मा जी के पैर की हड्डियां घिस गई तब से छोटी-छोटी चीजों के लिए भी मुझे बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी। एक बार मेरा गीजर खराब हो गया था तो मैंने उसे बताया कि बेटा एक मिस्त्री को फोन किया था दो दिन हो गए लेकिन वो नहीं आया तो झट से बोला "आंटी कोई भी काम हो आप मुझे याद करिएगा, मैं तुरंत चला आऊंगा।" कुछ देर बाद न जाने कहां से मिस्त्री पकड़कर लाया। इस तरह वो मेरे बहुत सारे छोटे - मोटे काम कर देता। धीरे - धीरे वो मेरे परिवार का एक हिस्सा बन गया था।
आज उसके शव को निरीह जमीन पर पड़ा देखा तो कलेजा मुंह को आ गया। विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने हंसमुख चेहरे के अंदर इतना गहरा अवसाद लिए फिर रहा था। जिसे उसने कभी किसी के सामने जाहिर नहीं किया। कल ही तो हमारी बात हुई थी और आज ऐसा कुछ जिसकी मैं कल्पना नहीं कर सकती थी। खैर परिवार से पता चला कि वो दो साल से डिप्रेशन से जूझ रहा था। उसके जाने की खबर सुन दोस्तों और रिश्तेदारों की भीड़ लग गई लेकिन इस भीड़ में वो कितना अकेला था आज वो दुनिया को बतला गया।
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