अम्मा

यह एक संस्मरण है। अम्मा अपने जीवन में कौन से परिस्थितियों से जूझती है और एक दिन जीवन से हार मान लेती है। इन्ही उतार - चढ़ाव की ये कहानी है।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 24 Jun, 2020 | 1 min read

बात तब की है जब मैं स्कूल में थी, तब इमली बेचने वाली अम्मा रोज हमारे स्कूल के पास आती और सारी लड़कियां उससे इमली खरीदती। उम्र सत्तर की होगी, पता नहीं उससे मुझे इतना लगाव क्यों हो गया था, रोज उसके आने का इंतज़ार करती। वो भी मुझे प्यार करती और कभी कभी मुझे बिना पैसों के ही इमली दे देती। एक दिन मैंने पूछा - अम्मा आपके परिवार में कौन-कौन हैं?

सभी हैं बेटा - बहू, पोता - पोती भरा - पूरा परिवार हैं मेरा - अम्मा ने कहा। फिर भी आप इस उम्र में इतना कष्ट क्यों उठाती हो? बिटिया तू बहुत छोटी हैं इन बातों को समझने के लिए, तुम इतना ही समझो की सब हैं पर मैं इस दुनिया में अकेली हूं। ये बातें छोड़ ये ले इमली, लेकिन अम्मा आज मेरे पास पैसे नहीं हैं... कोई बात नहीं तू तो मेरी पोती जैसी हैं। मैंने इमली ले लिया और क्लास में चली गई।

कुछ दिन बाद मुझे पीलीया हो गया और डाॅक्टर ने बेड रेस्ट बोल दिया । पन्द्रह - बीस दिन लगे मुझे ठीक होने में अम्मा से मिलने का बड़ा मन हो रहा था और मन ही मन गुस्सा भी थी कि वो मुझसे मिलने मेरा हाल पूछने क्यों नहीं आई। स्कूल जाने के लिए बेसब्र हो रही थी आखिर मां ने स्कूल जाने की इजाजत दे ही दी, दूसरे दिन स्कूल गई और लंच होने का इंतजार करने लगी। लंच होने के बाद इमली बेचने वाली अम्मा को बड़ी ही बेसब्री से ढूढ रही थी, रोज तो लंच होने से पहले ही गेट के पास बैठी रहती हैं आज क्या हुआ? शायद उसकी तबियत खराब हो गई होगी- मैनें बुदबुदाते हुए खुद से कहा। तभी मेरी क्लास मेट मीरा आई और उसने मुझसे पूछा- तु यहाँ क्या कर रही हैं? चल अब तो बेल बज गई, क्लास में चलते हैं। मैने कहा की इमली वाली अम्मा का इंतजार, मीरा ने मुझसे कहा- अब वह कभी नहीं आएगी, तुम्हें नहीं मालूम तीन दिन पहले उसका देहांत हो गया। मुझे यकीन नहीं हुआ....वह अच्छी भली थी, अचानक ये.........।

बेचारी बहुत ही दुःख झेली जब तक जिंदा रही। चार बेटे - बहू और पोते पोतियों से भरा संसार था फिर अपना बोझ खुद उठाती थी। सारी संपत्ति अपने नाम करवाने के बाद बेचारी को धक्के खाने के लिए घर से निकाल दिया। बहुत दिनों से बीमार थी और इलाज कराने के पैसे न थे। उस दिन चिर निद्रा में सो गई। खुशी इस बात की हैं की भगवान ने सुकुन भरी मौत दी। अरे हां जब तू बीमार थी और स्कूल नहीं आ रही थी तो वो रोज तुझे पूछा करती थी और तेरे जल्दी ठीक होने की प्रार्थना भी करती थी। ये सब सुन मेरा कलेजा मुंह को आ गया।

अम्मा के बारे में तुम्हें इतनी बातें कैसे पता चली - मैंने जिज्ञासा पूर्वक पूछा।

अरे मेरी कामवाली उसी बस्ती में रहती हैं, उसी ने मुझे बताया - मीरा ने कहा।

अम्मा के बारे जानकर बहुत दुःख हुआ और उनका हंसता हुआ चेहरा आंखों के सामने घूम गया।

प्रगति त्रिपाठी





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