रूप शर्मा जी और विमला जी को दो लड़कीयाँँ ही थी। जब विमला जी को दूसरी बार भी लड़की ही हुई, तो उनकी सास ने कहा कोई बात नहीं अगली बार तो लड़का ही होगा। लेकिन रूप जी और उनकी बीबी समझदार थे, रूप जी ने अम्मा से कहा - अम्मा लड़का हो या लड़की हमें कोई फर्क नहीं पड़ता हैं, मुझे तो बस इन दोनों के लिए अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करनी हैं।
"अरे बेटा तू नहीं समझेगा इन्हें भी एक भाई चाहिए होगा, ये रक्षाबंधन पर किसे राखी बाँधेगी? "
"तू इसकी चिंता मत कर माँ समय आने पर इनको भाई भी मिल जाएगा - रूप जी ने कहा।"
दिन बीतते गया, दोनों लड़कीयां बड़ी होने लगी, रक्षाबंधन आने को था तो मीन्नी और विन्नी ने अपने माँ से सवाल किया - माँ हमारा कोई भाई नहीं हैं, हम किसको राखी बाँधेगी। विमला जी ने कहा कौन कहता हैं तुम्हारा कोई भाई नहीं हैं , पड़ोस में रहने वाले रवि भईया हैं, उन्हें राँखी बाँधना। दोनों बहनें खुश हो गई और रक्षाबंधन के दिन उन दोनों ने रवि भईया को राखी बाँधी। कुछ सालों बाद रूप जी का तबादला दूसरे शहर में हो गया। विन्नी और मीन्नी के कई भाई बने, लेकिन ऐसा कोई नहीं बना जो जिंदगी भर उनका साथ निभाये। विन्नी ने माँ से पूछा मम्मी राँखी बाँधने का क्या मतलब होता हैं - विमला जी ने कहा किसी को राँखी बाँधने का मतलब ये हैं की वो दुःख और सुख में हमारा साथ दे, जो आपकी रक्षा करें।
"इस पर विन्नी ने सोचा हमारी रक्षा और हमारे दुःख- सुख में तो भगवान हमारा साथ देते हैं, तो आज से मैं कृष्ण भगवान को राँखी बाँधुगी"। विन्नी बचपन से ही भगवान कृष्ण की दीवानी थी। अगली बार जब राँखी का पर्व आया तो विन्नी राँखी ले आई। विमला जी ने पूछा -" ये राँखी किसे बाँधेगी।" इस पर विन्नी ने कहा -" ये राँखी मैं कृष्ण भगवान को बाँधुगी "। तुमने ही तो कहा था जो हमारे दुःख - सुख में हमारी रक्षा करें तो भगवान जी ही तो हमारी हर विपदा में साथ देते हैं । विमला जी को विन्नी के इस भोलेपन पे प्यार आया, उन्होंने कहा जैसी तेरी मर्जी।
उस दिन से विन्नी कृष्ण भगवान को राँखी बाँधने लगी। कुछ लोग इस बात पर उसकी हँसी उड़ाते लेकिन विन्नी बड़ी ही श्रद्धा भाव से कृष्ण भगवान को राँखी बाँधती थी। काँलेज की पढाई पूरी होने पर रूप जी ने दोनों बेटियों की अच्छे घर में शादी कर दी। विन्नी के ससुराल में भी जब सबने ये बात जानी तो सब हँस पड़े सबने यही कहा ये तो सही में तुम्हारे अनोखे भईया हैं।
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