आशा की किरण #world environment day

पर्यावरण दिवस विशेष लघुकथा

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 06 Jun, 2020 | 1 min read



"हैप्पी बर्थडे टू यू सोनी!", मनोज ने कहा।

"थैक्यू पापा! मेरा बर्थडे गिफ्ट कहां है? "

"ये रहा तुम्हारा गिफ्ट।"

"ये क्या पापा! इसका मैं क्या करूंगी?, मुझे लगा आप कुछ अनोखा, कुछ अलग गिफ्ट लाएंगे," सोनी ने अनमने ढंग से कहा।

"बेटा, देखो ये अनोखा भी है और अलग भी, इस ग्लोब से तुम्हें यह पता चलेगा कि पहले हमारी पृथ्वी कितनी हरी - भरी थी, कितना पानी था, दुनिया में कितने देश है, और भी बहुत कुछ..तुम इस ग्लोब के द्वारा जान सकती हो।"

सोनी, अब गौर से पापा की बात सुनते हुए बोली, "अच्छा पापा, अब हमारी पृथ्वी पहले जैसी क्यों नहीं रही। कल टीचर बता रही थी कि कई जगह लोग पानी के लिए, शुद्ध हवा के लिए तरस रहे है।

"हां बेटा! तुम्हारी टीचर ने सही कहा, ये सब हम इंसानों के कर्म है जिसने अपने एशो-आराम के लिए, प्रकृति का बहुत हनन किया। पेड़-पौधे, जल, वायु सबको प्रदूषित कर दिया और अब प्रकृति का प्रकोप झेल रहे हैं।"

"क्या पृथ्वी पहले की तरह नहीं हो सकती?"

"हाँ, अगर हम अगर अपने आवश्यकताओं को सीमित कर ले और पेड़-पौधों लगाए। "

"अरे वाह! फिर तो मैं, अपने दोस्तों को भी ये बात बताऊंगी और हम-सब मिलकर पृथ्वी को पहले की तरह हरा - भरा बनायेंगे।"

छोटी सी बेटी की बड़ी बात सुनकर मनोज की आंखों में आशा की किरण जाग उठी।


प्रगति त्रिपाठी

 बंगलोर

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