"अरे मोहनवा इ का आज भी काम कर रहा है?" रास्ते से गुजरते हुए हरिहर बोला।
"काहे आज ऐसा का है कि हम काम नहीं कर सकत है?", मोहनवा बोला।
"अरे आज स्वतंत्रता दिवस है, आज ही तो अपना देश आजाद हुआ था और आज तो सरकार के तरफ से भी छुट्टी रहती है।", हरिहर बोला।
"हां.. आज देश भले ही आजाद हुआ होगा लेकिन हम गरीब को आजादी नहीं है रे। अगर हम आज काम नहीं करेंगे तो मालिक साफ बोला है कि ऊ हमार आज का पैसा काट लेगा। अब बताओ इ परिस्थिति में हम का करे। तूझे तो पता है ना, हमारे पास ना जमीन है ना जायदाद। घर - गृहस्थी है, बच्चे हैं और अगर हम रोज कमाएंगे नहीं तो खाने को भी नहीं मिलेगा।, मोहनवा दुःखी होते हुए बोला।
"हां.. भईया सही ही कहा रहे हो। हम तो आजाद पंछी है शायद घर - गृहस्थी होने के बाद हमारा भी यही हाल हो। खैर चलो हम चलते हैं", इतना कहकर हरिहर वहां से चला गया।
पास ही के मैदान में नेताजी भाषण दे रहे थे, " सब लोग एक समान है, सबको समान अधिकार प्राप्त है, न कोई ऊंच है ना नीच, गरीबी, शोषण, भ्रष्टाचार सब मिट रहा है.......हमारा देश बहुत तरक्की कर रहा है और आगे भी करता रहेगा........।"
नेताजी का भाषण सुन मोहनवा हंस पड़ा और फिर अपने काम में जुट गया।
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