"बिटिया, ये क्या हालत बना रखी है तूने! कितनी दुबली हो गई है, खाती - पीती नहीं क्या? तेरे घर में तो किसी चीज की कमी नहीं, भाग्यशाली हैं तू जो इतने बड़े घर में तेरा लगन हुआ है।,"बेटी से मिलने आई कमला बोली।
"माँ इधर आओ, तुम्हें कुछ दिखाती हूं, वो देखों कितनी सुंदर चिड़िया है।," पड़ोस के घर की बालकनी में पिंजरे में बंद चिड़िया को दिखलाते हुए बोली।
"अरे हाँ.. और देख ना उसका पिंजरा कितना सुन्दर है। बाप रे इसे खाने के लिए मेवे और कितने महंगे फल दिए गए हैं। जंगल में रहकर भी इसे ऐसा खाने को नहीं मिलता होगा.. बड़ी भाग्यशाली हैं।", कमला ने कहा।
"हाँ माँ, बहुत भाग्यशाली हैं, ये तो आपने देख लिया लेकिन एक बार उस चिड़िया की तरफ नहीं देखा जो इतना सब मिलने के बाद भी वह उदास एक कोने में बैठी है। ऐसा लग रहा है जैसे कितने दिनों से बीमार है।" उर्मि ने ठंडी आह भरते हुए कहा।
"अरे हां, ये तो मैंने देखा ही नहीं लेकिन सबकुछ होने के बाद भी ये इतनी उदास क्यों है?"
"माँ, ये जिस जंगल में रहती थी, वहाँ उस पर कोई बंधन नहीं था। खुले गगन में पंख फैलाए उड़ती थी। जो मन करता था खाती थी। वो उसी में खुश थी, लेकिन देखों ना यहां तो उसकी आजादी ही छीन गई है। दिन - रात कमरे में बंद रहती है। न किसी से मिल सकती है ना बोल सकती है ना ही हँस सकती है। बस दिन - रात रोते रहती है, उसे पिंजरे से आजादी चाहिए। मुझे घर ले चलों माँ," उर्मि के आँख से झर - झर आँसू बह रहे थे।
उर्मि को रोता देख कमला का दिल दहल गया, उन्होंने उसे गले से लगा लिया और उनकी आँखों से सच्चे सुख का भ्रम टूट गया।
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