रवि जी की दुनिया बस उनके तीन बच्चों तक ही सिमट कर रह गई थी। पत्नी ने बेवक्त ही साथ छोड़ दिया था। अब बच्चों की परवरिश और भविष्य संवारने की जिम्मेदारी उनके अकेले कंधों पर थी। रवि जी चाहते थे कि तीनों बच्चों को सही दिशा मिल जाए लेकिन तीनों बड़ी तेजी से दिग्भ्रमित दिशाओं की ओर अग्रसर होने लगे। जिस परिपक्वता और ठहराव से जीवन की गाड़ी रवि जी ने अपने अकेले कंधों पर चलाई थी वो विचारधारा के टकराव के कारण अलग दिशाओं में बह निकली।
विपरीत दिशाएं
यह लघुकथा विचारधारा के टकराव और अधीरता को आईना दिखाती है।
Originally published in hi
Pragati tripathi
07 Jan, 2020 | 0 mins read
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