बात उन दिनों की है जब मेरी शादी पक्की हुई थी। मेरे ससुराल के सभी सदस्य मुझे देखने आए थे और रिश्ते को मंजूरी मिल गई। उसके एक महीने बाद 27 जनवरी को मेरी सगाई हो गई। मेरी ननदों ने मुझे बताया की मेरे पति बहुत ही शर्मीले स्वभाव के हैं। छोटी ने कहा, "भाभी देखिएगा आपको ही पहले भईया से बात करनी पड़ेगी, वो आपको फोन नहीं करेंगे।" खैर सगाई के बाद मैं अपने घर आ गई और पतिदेव बंगलोर में कार्यरत थे तो वो भी बंगलोर चले गए।
मैं भी स्वभाव से बहुत शर्मीली हूं तो मैंने पतिदेव से बातचीत की शुरुआत नहीं की और उन्होंने भी बातचीत की शुरुआत नहीं की। ऐसे ही दिन गुजरता गया। सात फरवरी को रात के खाने के बाद हम सभी परिवार के सदस्य होने चले गए, अचानक रात को साढ़े दस बजे मेरा फ़ोन बज उठा। मैं घबरा गई क्योंकि मेरी दोस्त या घर के सदस्य इतनी रात को मुझे फोन नहीं करते थे। डरते डरते मैनें फोन रिसीव किया। उधर से आवाज आई, "मैं बोल रहा हूं।" इतना सुनते ही मैंने घबराकर फोन काट दिया। तभी मम्मी के कमरे से आवाज आई इतनी रात को किसका फोन आया है तो मैंने मम्मी को बता दिया। मम्मी ने कहा, "ठीक है बात कर लो।" फिर फोन आया तो मैंने रिसीव किया और उसी दिन से हमारी बातें होने लगी। इसलिए वेलेंटाइन डे मेरे लिए बहुत खास है।
इसी दिन से हमारे रिश्ते की शुरुआत में बातचीत की मिठास घुल गई। एक दूसरे को जानने समझने का मौका मिला।
ये वेलेंटाइन है कुछ खास
दो दिलों के मिलन की शुरुआत।
Originally published in hi
Pragati tripathi
13 Feb, 2020 | 0 mins read
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