दोहन

यह लघुकथा पर्यावरण के दोहन से होने वाली क्षति को दर्शाती है।

Originally published in hi
Reactions 0
1719
Pragati tripathi
Pragati tripathi 07 Jan, 2020 | 1 min read

पापा, इस बार पेड़ों का सौदा मत करिए,प्लीज मेरी बात मानिए, "अशोक ने कहा।
"अरे.. इस बार तो एक बड़े खरीददार से सौदा किया है इन पेड़ों का! पिछली बार भी अच्छी कमाई हुई थी और तुम कहते हैं पेड़ो का सौदा नहीं करूं... तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना! यही तो मेरा बिजनेस है, पेड़ उगाता हूं और फिर काटकर उसे बेच देता हूं। इसी कमाई से तो ये ऐशों - आराम, बंगला और ये जो तुम गाड़ी लिए फिरते हो ना.. सब इन्हीं पेड़ों की बदौलत है।", विनय जी ने कहा।
"हां पापा,  मेरी तबियत पहले खराब थी लेकिन अब मेरी आंखें खुल गईं हैं। आपने सही कहा, हम सारे ऐशों - आराम प्रकृति का दोहन करके ही रहे हैं। आपने देखा है कि इस जगह हम हजार पेड़ उगाते थे... अब इन दस सालों में इन पेड़ों की संख्या घट कर सिर्फ तीन सौ तक ही सीमित रह गई! क्यों?.. क्योंकि अब ये जमीन धीरे - धीरे-धीरे बंजर हो रही है  क्योंकि हमने इस जमीन का इतना दोहन किया कि मिट्टी के अंदर के सारे प्राकृतिक तत्व खत्म हो गए।", अशोक बोला। 
"हां.. तेरी बात भी सही है, अपने बाग के हजार पेड़.. अब तीन सौ तक ही सीमित रह गए हैं। मैंने तो कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया! धन की चाह में मैंने भविष्य का तो सोचा ही नहीं.....अच्छा हुआ जो समय रहते तूने मेरी आंखें खोल दीं बेटा! हैलो.. हां शर्मा जी मैं ये डील कैंसिल करता हूं, मैं अपने पेड़ नहीं बेचूंगा! उधर से आवाज आई,- "अरे विनय जी.. आपको पैसे कम लग रहे हैं तो और दे दूंगा।" "नहीं.. नहीं, मुझे और पैसे की चाह नहीं, बस मैं ये डील कैंसिल कर रहा हूं," इतना कहकर फोन काट दिया।


0 likes

Published By

Pragati tripathi

pragatitripathi

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.