कभी प्रकृति ऐसे ही मुस्कुराती होगी
कभी फूल ऐसे ही खिलखिलाते होंगे
कभी भंवरे ऐसे ही गुनगुनाते होंगे
कभी हवाएं ऐसे ही शोर मचाते होंगे
कभी मोर ऐसे ही नृत्य करते होंगे
कभी नदियां ऐसे ही कल-कल बहती होंगी
हां ये सब कभी होता होगा.. क्योंकि तब इंसान ने इतनी तरक्की नहीं की थी।
तब वो कम में गुजारा करना जानता था
धीरे-धीरे महत्त्वकांक्षी बन प्रकृति का हनन कर विजय पा लिया
तब समझ बैठा खुद को सर्वश्रेष्ठ
गर्व तो रावण का भी ना रहा
फिर इंसान की क्या बिसात
अब बैठे है घरों में खुद को बंद करके
डरकर एक महामारी से
जो पल में इंसानों को आईना दिखा रहा है
है वो भूखा दानव जो इन्हें कच्चा चबा रहा है
कुछ समझ गए समय की चाल को
कुछ अभी भी जा रहे, काल के गाल में
वक्त है आत्ममंथन का, अपने किए को बदलने का
ये प्रण कर तू नहीं करेगा प्रकृति से छेड़छाड़
तभी वो सुनहरा कल फिर से आएगा
हे मानव तू फिर से मुस्कुराएगा......
#poetry contest
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.