जीवनसाथी

यह कहानी पति - पत्नी के प्रेम को दर्शाती है, एक - दूसरे के प्रति त्याग और समर्पण की कहानी है।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 26 Dec, 2019 | 1 min read

"सुधा.. सुधा कहां हो?," रमेश ने पुकारते हुए कहा।

सुधा जी आवाज सुनकर रसोई से बाहर आई और  न आव देखा न ताव और अपनी बात एक सांस में कहने लगी,  "अरे इतनी सुबह-सुबह बिना बताए कहां चले गये थे, मुझे घबराहट हो गई थी। बार - बार कहती हूं बिना बताए कहीं मत जाया करो, मुझे चिंता होने लगती है।"

"विवाह की पचासवीं वर्षगांठ मुबारक हो! गुलाब का फूल देते हुए कहा....मैं तो तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था इसलिए तुम्हें बिना बताए यही नुक्कड़ तक चला गया था। तुम्हें हमेशा शिकायत रहती है ना कि मैं शादी की सालगिरह भूल जाता हूं लेकिन देखा इस बार मुझे याद रहा और तुम ही भूल गई।"
"आपको भी बहुत बधाई! अच्छा.. आपको ऐसा लगता है कि मैं इस बार भूल गई! जरा कमरे में जाकर देखो।", सुधा जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
रमेश जी कमरे में गए तो देखा...टेबल पर एक स्वेटर और कार्ड रखा था। कार्ड को खोला तो उसमें एक गाने की दो लाइनें लिखी थी -
जनम - जनम का साथ है हमारा - तुम्हारा, तुम्हारा - हमारा।
अगर न मिलते इस जीवन में लेते जनम दुबारा।

स्वेटर देखते ही अतीत में खो गये, " उन्होंने एक बार ऐसे ही स्वेटर लेने की उन्होंने इच्छा जताई थी", उस अनमोल गिफ्ट को देख मंद - मंद मुस्कुराने लगे।

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