खुशियों की रात

यह कहानी एक छोटे से बच्चे की है जो एक वक्त के खाने के लिए जद्दोजहद करता है और इस सबमें उसका बचपन कहीं खो जाता है।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 27 Dec, 2019 | 1 min read

कितने दिनों से घर की सफाई में लगी हुई हूं लेकिन काम खत्म होने का नाम ही नहीं लेता है, जैसे लगता है कि अब काम खत्म हो गया तभी दूसरा काम सामने आ जाता है, बुदबुदाते हुए ममता ने कहा। घर की सफाई में लगी...ममता ने कुछ बच्चों के खिलौने और छोटे कपड़ों को एक कार्टून में रख दिया... सोचा किसी जरूरतमंद बच्चे को दे देगी। कचरा फेंकने गरी तो देखा एक बच्चा कचड़े से टूटे - फूटे सामान और खिलौने चुन रहा था... फिर उस खिलौने से खेलने लगा।
ममता ने उसे पास बुलाया और उससे पूछा," ऐ लड़के इधर सुन जरा! तुझे खिलौने चाहिए? लड़का बोला," नहीं... मुझे खिलौने नहीं चाहिए।

" अभी तो तू इन टूटे - फूटे खिलौनों से खेल रहा था", ममता ने कहा।
मेमसाब... मैं... ये सब इकठ्ठा कर बेच दूंगा, तो सोचा थोड़ी देर खेल लूं। इसे बेचकर जो पैसे मिलेंगे... उससे हमे आज के दिन कुछ अच्छा खाने को मिल जाएगा", बच्चे ने जवाब दिया।

छोटे से बच्चे के मुंह से ये सब बातें सुनकर.... ममता का मन भर आया। उसने बच्चे को बुलाकर बहुत सारे पकवान, कुछ पैसे और कपड़े दिए तथा साथ में वो खिलौने देकर बोली, इससे तुम खेलना। अचानक इतनी सारी चीजें एक साथ देखकर उसकी आंखें ख़ुशी से चमक उठी... उसने मेमसाब को धन्यवाद कह... अपनी बोरी में सारे समान भरकर गीत गुनगुनाते हुए चला गया।


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