#कोरोना महामारी

लघुकथा

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 25 Mar, 2020 | 1 min read


"पापा कहां जा तानी?, मुनिया पापा के सामान लेके बाहर जात देखके टोकलस ।
"बबुनी काम पर जा तानी"
"लेकिन पापा, रउआ इ बेमारी लाग जाई त! कोरोना वायरस के कारण सरकार सबकुछ बंद कर देले बा। लोग घर के बाहर नइखे निकलत फिर रउआ के काम के दी?", रजनी कहलस।
"बेटा, हम गरीब महामारी से बाद में भूख से पहिले मर जानी सन। सरकार त सबकुछ बंद कर देलस लेकिन अब हम सब गरीब मजदूर के घर चुल्हा कइसे जली, पेट के आग बुझावे खातिर त बाहर निकले के पड़ी नू। तू चिंता मत कर बबुनी अभी भी दुनिया में अईसन  रईस लोग बा जे इ महामारी में भी आपन काम करवा ली।", रमुआ कहलस।
"ना पापा आज ही रमेश चाचा कहत रहलन कि सरकार गरीब के राशन दी और खाना के पैकेट के भी प्रबंध करी। एहिसे हमनी के चिंता करे के कौनो जरूरत नइखे।"
"अच्छा, इ त बहुत अच्छा बात बा, इ त बहुत अच्छा कदम उठइलेबा आपन सरकार। चलअ मजदूर अउरी गरीब अब इ महामारी में भूख से ना मरी", एतना कहके रमुआ आपन सामान रख देहलस।
प्रगति त्रिपाठी


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