#कोरोनावायरस " हम नहीं सुधरेंगे"

कोरोनावायरस के प्रति जागरूक करती छोटी सी कहानी।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 27 Mar, 2020 | 0 mins read

मालती... गुड़िया कितना समय लगेगा तुम लोगों को, जल्दी करो वरना समय पर नहीं पहुंच पाएंगे?, अवधेश जी ने कहा।

"हम तैयार हो चुके हैं पिताजी, चलिए", गुड़िया दौड़ते हुए कमरे से आई।

तभी फोन की घंटी बजती है ट्रिंग... ट्रिंग..।

हैलो,

"कैसे है पापा? अपलोग घर में ही है ना! कहीं भी बाहर मत निकलीएगा। जब तक ये कोरोना की समस्या ना टल जाए।", रवि एक सांस में बोल गया।

"अरे बेटा, बाहर तो जाना ही पड़ेगा ना। आज तेरी भांजी का पहला बर्थडे है। तू तो नहीं आया लेकिन इसी शहर में रहकर हम अगर नहीं गए तो समधी जी क्या सोचेंगे? ऐसे भी हमारे राज्य में अभी तक एक भी पाॅजिटिव केस नहीं आया है।," अवधेश जी ने कहा।

"क्या दीदी के ससुराल वालों ने फंक्शन कैंसिल नहीं किया? मैंने तो जीजाजी से बात की थी। क्या उन्हें नहीं पता कि ये कितनी बड़ी महामारी है? हमारी सरकार ने सामाजिक मेलजोल करने से साफ मना किया है फिर भी वो लोग फंक्शन कर रहे हैं! पिताजी अगर अपने राज्य में पाॅजिटिव केस नहीं आया इसका मतलब ये तो नहीं कि वहां कोरोना वायरस जड़ से खत्म हो गया है। ," रवि ने चिंता जताते हुए कहा।

"अरे बेटा, तू चिंता मत कर, हमें कुछ नहीं होगा। हम घर से निकल गये है, बस कुछ देर में पहुंच जाएंगे।, अवधेश जी ने कहा।

" वहां लाॅकडाउन का कोई असर नहीं है क्या? क्या पुलिस घर से बाहर निकलने वाले को नहीं रोक रही है? ये कैसे संभव हो सकता है?", रवि आश्चर्य से बोला।

"अरे बेटा, पुलिस तो रोक रही है लेकिन मैं उससे बात कर लूंगा। रही बात फंक्शन की तो वो घर के अंदर ही कर रहे हैं। बहुत लोग तो नहीं आ पाएंगे लेकिन मोहल्ले के लोग तो आएंगे ही। वैसे भी पुलिस को घर के अंदर क्या चल रहा है कैसे पता चलेगा। एक मिनट होल्ड करना बेटा!

"कहां साहब?", पुलिस ने गाड़ी रोकते हुए पूछा।

"जी बेटी बहुत सीरियस बीमार है, उसे ही देखने जा रहे हैं," अवधेश जी ने बहुत चतुराई दिखाते हुए कहा।

अरे..अरे, जाइए साहब"

रवि फोन पर सारी बातें सुन रहा था।

" बेटा मैं फोन रखता हूं, बस पहुंचने ही वाले है। तुम्हें सारे फोटो और वीडियो भेज दूंगा।", इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

कुछ ही पलों में रवि के फोन में बहुत सारे ग्रुप फोटोज आने लगे। फोटो देखकर रवि बुदबुदाने लगा.... जाने हम वक्त की नजाकत को कब समझेंगे... इतनी बड़ी महामारी को भी खेल समझते हैं..... जाने हम कब सुधरेंगे।

प्रगति त्रिपाठी

बंगलोर

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