मेरा मुल्क

Religious violence in india

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Poonam
Poonam 22 Dec, 2020 | 1 min read


कुछ निशा बाकी है,मेरे मुल्क मे मेरा जहाँ बाकी है।

मै चलता गया ,लगा कि जीता गया

उन आखो में मेरी बडली पहचान बाक़ी है

कभी अल्फाज़ो ने सरकार के, मुझसे मेरी पहचान पूछी,

तो कभी उन आंखों के तेवर देखे,

जिन यारों का बस अहसास बाकी है।

मेरे दर्द को कौन जाने आए ग़ालिब 

मेरे अपने होने का बस गुमान बाक़ी है।

मेरे मुल्क के ठेकेदारों का ,अबद अफसोस बाकी है।

मेरे अपने मुल्क में मेरी पहचान बाकी है।

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Poonam

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