आज मैं जिंदा कर देना चाहती हूं,
मेरे मन के कई अल्फाज़ो को,
कागज़ पर लिखना मैं भी चाहती हूँ,
मेरे ही कुछ छुपाए राज़ों को,
कब तक जकड़कर रखूंगी दिल में,
कुछ गिले-शिकवे तो कुछ नातो को,
मैं भी भुला देना चाहती हूं,
अब जीवन के अँधियारो को,
शब्दों से पिरोना मैं भी चाहती हूं,
अब जीवन के नए क़िस्सों को,
रिश्ते अब नहीं निभाना चाहतीं मैं,
भुलाना है अब कुछ अपनों को,
एक दिन जीत तुम भी जाओगे,
नज़रंदाज़ करो लोगों की बातों को,
भगवान के घर देर हैं अंधेर नहीं,
बस तुम अपने शब्दों को आवाज़ दो|
@पूनम चौरे उपाध्याय
मौलिक, स्वरचित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice 👍👍
Thanks neha ji
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