मुझे मेरे जीवन का वो पहला शिक्षक याद तो नहीं,
ज़रुर माँ ने ही पहली शिक्षिका का फ़र्ज़ निभाया होगा।
कष्ट और तकलीफें तो उसको बहुत हुई होंगी,उस वक़्त,
जन्म देकर उसने अपना जीवन दांव पर लगाया होगा।
मुझे मेरे जीवन का वो पहला कदम याद तो नहीं,
तब माँ ने बड़े प्यार से मुझे चलना सिखाया होगा।
कदम तो मेरे भी डगमगाए होंगे उस वक़्त,तब माँ ने
ज़रूर मुझे अपनी गोद में उठाया होगा।
जिद तो मैंने भी की होंगी माँ से बहुत ,
डांटकर उसने मुझे खाना ज़रूर खिलाया होगा।
खेलते खेलते जब मैं बहुत थक गई होंगी,
मेरे पैरों को दबाकर माँ ने ज़रूर सुलाया तो होगा।
आज जब मैं भी एक बेटी की माँ हूं,
माँ की तरह ही मैं भी उसे सब सिखाती हूं।
बेटी के कदम थोड़े से भी लड़खड़ाते है,
तो माँ की तरह ही बहुत घबरा सी जाती हूं।
जब भी ज़िद करती हैं वो मुझसे,तो माँ तरह ही डांटकर,
मैं उसे अपनी गोद में सुलाती हूं।
माँ से ही सीखा होगा, मैंने ये हुनर,
तभी अपनी बेटी को मैं आज सीखा पाती हूँ।
माँ से अच्छी शिक्षिका कोई और नहीं देखी जीवन में,
मैं आप सभी को ये बताना चाहती हूँ।
मैं भी अपनी बेटी की अच्छी माँ बनकर,
मेरी माँ जैसे सारे फ़र्ज़ निभाना चाहती हूं। सारे फ़र्ज़ निभाना चाहती हूं।🙏
@पूनम चौरे उपाध्याय
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.