अब तो इतने सालों बाद नेहा ने सोच ही लिया था कि उसे अब "खुदको बदलना होगा"।
बात आज से कुछ 8 साल पहले की है जब नेहा शादी करके ससुराल गयी थी। ससुराल में जाकर उसको लगा कि यह तो सबके स्वभाव,सबका खान पान,रहन सहन उसके मायके से एकदम अलग है,जो ही हर एक लड़की के साथ अक्सर शादी के बाद होता है।
नेहा एक छोटे शहर से थी जबकि उसकी शादी एक बड़े शहर में हुई थी। बड़े परिवार से जाकर वहाँ नेहा को अकेले रहना पड़ रहा था क्योंकि उनके पति रितेश को अक्सर काम से शहर से बाहर जाना होता था। सप्ताह में एक दिन रितेश रविवार को घर आते थे। नेहा पूरे सप्ताह सोचती कि रविवार को ये सब काम करने है। एक दिन नेहा ने रितेश से कहा" कि घर का राशन लाना है"
रितेश ने जोर से नेहा को चिल्लाकर कहा, "तुम कब सीखोगी ये सब", मुझे एक दिन मिलता है उसमें भी तुम्हारे सारे काम करता रहू इससे तो में कुँवारा ही अच्छा था।"
नेहा ये सुनकर चुप हो जाती सोचती मायके में तो सब बिना मांगे ही मिल जाता था।
फिर नेहा रितेश से बोली आप पैसे दे दिया करो मै राशन खुद ही ले आया करूँगी,क्योंकि शादी के पहले नेहा एक स्कूल में टीचर थी पर शादी के बाद से वो घर गृहस्थी में उलझ सी गयी थी और उसके पास पैसे भी नही होते थे।
जब वो बाजार जाती तो सोचती "क्या इतने कम पैसे में राशन आ जायेगा" क्योंकि रितेश की हर बात पर गुस्सा करने की आदत की वजह से वो जितने पैसे देता ले लेती थी। नेहा बाजार जाकर हर एक चीज़ के दाम देखती और जो बहुत जरूरी होता वो ले लेती।
नेहा सोचती वक्त लगेगा अभी ये सब सीखने में। नेहा की मानो ज़िन्दगी बदल सी गयी थी,वह अपने लिए भी कुछ नही ले पाती थी। एक समय बाद नेहा ,घर और बाहर का सब काम करना खुद से सीख गयी पर रितेश में कोई अंतर नही आया वो अभी भी बात बात पर उसपर गुस्सा करता था।
एक और बात से नेहा परेशान रहती थी वो था रितेश का कभी कभी शराब पीना और घर देर से आना। वो सोचती एक दिन मिला है रितेश के साथ बाते करूँगी पर रितेश कभी दोस्तो के साथ और कभी अपने फ़ोन में व्यस्त रहता था।ऐसी बहुत सी बातें जो नेहा को रितेश की पसंद नही आती थी वो बोलती थी ऐसा मत करो वैसा मत करो मुझे टाइम दो पर रितेश को कोई फर्क नही पड़ता था।
ऐसे में दोनों के लड़ाई झगड़े बढने लगे। बहुत बार नेहा रितेश के सामने रोती थी," ये रोने का नाटक कही और जाकर दिखाना",कहकर रितेश चल देता था। वो सोचती थी मेरे माँ पिताजी तो एक आंसू भी नही गिरने देते थे यहाँ तो कोई पूछता तक नही है।
नेहा बहुत ज्यादा चिंतित रहने लगी,एक दिन उसने सोचा ऐसे तो वो जीवन नही जी पाएगी।
"उस दिन नेहा ने ठान लिया कि "अब खुदको बदलना होगा"।
और जब नेहा ने सारे लड़ाई झगड़े,हर बात पर रोक टोक,रोज़ की शिकायतें रितेश से करना बंद कर दिया और अपने लिए जीने लगी। अब उसे फर्क नही पड़ता था कि रितेश उससे बात करे या न करे,सब बातों को वो नज़रअंदाज़ करने लगी और खुद को व्यस्त रखने लगी। रितेश भी बहुत खुश रहने लगा ,उसे लगा नेहा की सारी शिकायते खत्म हो गयी और वह भी मेरे साथ बहुत खुश है पर सही मायने में नेहा खुश नही थी उसने अपनी इच्छाओं को मारकर जीना सीख लिया था और उसने रितेश की आदतों को अपनाना सीख लिया था।
"अब नेहा ने दुसरो को नही "खुदको बदलना सीख लिया था"
आपकी दोस्त
पूनम
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
संदेशपरक कथा
Thanks babita and sandeep ji
Please Login or Create a free account to comment.