आसां नहीं है ज़िन्दगी की जंग,
बहुत कुछ यहाँ सहना पड़ता है।
जन्म से मरने तक का सफर,
कण कण करके चुकाना पड़ता है।
चुप रहना अब सीख लिया मैंने,
क्योंकि मेरी बातों की कोई कद्र ना थी।
बातें तो बहुत करती थी मैं भी,
पर किसी को मेरी कोई फिक्र ना थी।
जबसे चुप हूं,
तो लोग पूछते मौन क्यों हो?
जब बोलती थी,
तो लोग कहते कि तुम बातूनी बहुत हो।
जिंदगी का सच है ये,
ना तो लोग जीने देते है,ना मरने देते है,
पता नहीं इंसान को किस तराजू में तोलते है।
पूनम चौरे उपाध्याय
मौलिक, स्वरचित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Sunder👍👍
धन्यवाद शुभंगिनी जी
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