"अरे सुनो आज रविवार है ,आज हम कहाँ घूमने चलेंगे" प्रिया ने पंकज से सुबह सुबह बड़े प्यार से पूछा।
हर रविवार कहाँ जाना होता है तुम लोगो को, पैसे क्या पेड़ पर लगते है, ज़ोर से चिल्लाकर सीमा जी बोली। मेरे बेटे को एक दिन मिलता है उसमे भी चैन से नही जीने देती। हर रविवार को यही नाटक है इसका।
यह सब सुनकर प्रिया मन ही मन सोचने लगी, पूरे सप्ताह इतना काम करो, घर मे सबका ध्यान रखो, क्या एक दिन भी मेरा नही है जिस दिन में अपने लिए जी सकू। मेरा भी मन करता है कि मैं बाहर की दुनिया देखूं।
"इतने ही पंकज बोला सही तो कह रही है माँ", क्या ज़रूरी है हर रविवार को बाहर जाना, इतना ही शौक़ है तो ये रखो मेरा एटीएम कार्ड, जो खरीदना है वो खरीद लो,जो खाना है खा लो और जहाँ घूमना है घूम लो, पर मुझे एक दिन मिलता है" चैन से जीने दो" ऐसा कहकर हाथ जोड़ते हुए पंकज भी वह से चल दिया।
प्रिया भी उस समय सीमा जी और पंकज से कुछ नही बोल पायी, सीमा जी के सामने सुरेश जी की भी नही चलती थी ,पर उनको बहु पर बहुत दया आती थी।
सुरेश जी अक्सर बोलते भी थे, "पंकज ,बहु और बच्चों को कही घुमाकर ले आओ" ,पूरे सप्ताह घर मे रहते है बेचारे बोर हो जाते होंगे, इतने में सीमा जी बोल देती "तुम चुप बैठो जी" घर की बातों में तुम मत बोला करो, हमारे ज़माने में हम भी तो घर मे ही रहते थे, तुमने कौन सा घूमा दिया हमको।
प्रिया भी किचिन में जाकर खाना बनाने में लग गयी, रोज़ की तरह रविवार का दिन भी निकल गया।
दूसरे दिन भी प्रिया सुबह उठकर अपने घर के काम मे लग गयी, वही बच्चो और पति का टिफ़िन बनाना,बच्चो को स्कूल के लिए तैयार करना ,उनको खाना खिलाना,पढ़ाना,सुलाना और सब काम निपटाकर, फिर वो भी थककर सो जाती।
वो सोचती आज का दिन बहुत व्यस्त था कल पंकज से बाते करूँगी।
ऐसे ही शादी के 10 साल निकल गए, अब तो बच्चे भी बाहर जाने की, कभी मूवी देखने की,कभी बाहर खाना खाने की ज़िद करने लगे।
"बेटा अपनी माँ के साथ चले जाओ", कितने पैसे चाहिये तुम लोगो को मैं देता हूं, "पंकज बोला"।
प्रिया भी गुस्से से बोल उठी " नहीं चाहिये हमें आपका ऐसा पैसा, मुझे तो आपका प्यार चाहिये, साथ चाहिए और आपका वक़्त चाहिये। पर पंकज हमेशा की तरह प्रिया की बातों को हवा में उड़ाकर वहां से चलता बना।
पंकज कभी ये समझ ही नहीं पाया, कि प्रिया को उसका पैसा नहीं ,प्यार चाहिये। जब भी पंकज को समय मिलता तो वह अपने दोस्तो को कॉल लगा लेता, फ़ोन में बिजी हो जाता या तो अपना आफिस का काम करने लग जाता।
समय बीतता गया एक दिन अचानक से प्रिया की तबियत बहुत खराब हो गयी और प्रिया इस दुनिया को छोड़कर चली गयी।
अब तो पंकज की जिम्मेदारिया बहुत बढ़ गयी,घर के काम,बाहर के काम, बूढ़े माँ बाप की सेवा, बच्चों को बाहर घुमाना फिराना, मतलब घर की एक एक चीज़ जो प्रिया करती थी, अब पंकज को करना पड़ रहा था।
प्रिया के जाने के बाद से वो एकदम अकेले से महसूस करने लगा था, वह सोचता "काश मैं प्रिया को समय दे पाता", उसे प्यार देता,उसका वक़्त देता, सच में उस बिचारी ने कभी भी मुझसे मेरा पैसा नही मांगा और मैं उसको समझ ही नही पाया। बस पैसा ही कमाने में लगा रहा।
उस दिन पंकज को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह "फूट फूट"कर रोने लगा।उस दिन पंकज को समझ आया, कि
"प्रिया को तो बस उसका प्यार ही चाहिये था"।
ऐसे ही एक अच्छे रिश्ते के लिए आप लोगो की ज़िंदगी में ,प्यार ज्यादा जरूरी है या पैसा?कृपया अपनी राय दे।
आपकी दोस्त,
पूनम
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Pyar jyada hona chahiye... paise to aata jaata rahta hai 💐💐very nice
Wahi to vineeta ji par bahut kam log samjhte hai
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