"बुढ़ापे में बहु बेटे से छुट्टी"

"बुढ़ापे में बहु बेटे से छुट्टी"

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Poonam chourey upadhyay
Poonam chourey upadhyay 10 Sep, 2020 | 1 min read

"मम्मीजी बिट्टू को देख लेना,जब वो उठ जाए तो उसे दूध गरम कर देना"बहु रीमा ने सरिता जी से कहा।

ये कहानी है,तिवारीजी के परिवार की,जहाँ हर रोज़ सुबह सुबह यही सब चलता था।मिस्टर तिवारी मतलब सुरेश जी और उनकी धर्मपत्नी सरिता जी।सुरेश जी 2 साल पहले ही रिटायर हुए थे।पेंशन भी 30 हज़ार मिल ही जाती थी।

रीमा उनकी बहू और बेटा रितेश दोनों ही बैंक में नौकरी करते थे।दोनों रोज़ ऑफिस के लिए निकल जाते और सरिताजी उनके पोते बिट्टू को संभालती थीं।

दिनभर सरिताजी को बिट्टू को नहलाना,खिलाना, पिलाना,पार्क लेकर जाना वगैरह सब काम करना पड़ता था।बिट्टू अभी 2 साल का ही था।

शाम के 8 तक बहु बेटे दोनों ही घर आ जाते थे।पर आकर रीमा के नाटक शुरू।मम्मीजी चाय बना दो, ये कर दो,वो कर दोसरिता जी बिचारी ये सोचकर कि बहु थक गई होगी, कभी चाय बना भी देती थी।पर रीमा ने तो उनको अपनी नौकरानी ही समझ लिया था।जब देखो बिट्टू को पकड़ा जाती,कभी दोस्तों से मिलने,कभी उसकी ऑफिस की पार्टीज ना जाने क्या क्या।

सरेश जी को बहुत गुस्सा आता था बहु पर।पर सरिताजी उनको चुप कर देती थी कि बहु बेटे ही हमारी सेवा करेंगे,इस बुढ़ापे में हम कहाँ जाएंगे।

एक बार सुरेशजी और सरिताजी का हरिद्वार का प्रोग्राम बना।शाम को खाना खाते समय सरिताजी ने रीतेश से बोला बेटा तुम्हारे पिताजी जबसे रिटायर हुए है जबसे कोई तीर्थ यात्रा नहीं गए।अब हम 15 दिन के लिए हरिद्वार जा रहे हैं।सरिताजी का इतना बोलना ही हुआ था,रितेश चिल्लाकर बोला,मॉ बिट्टू को कौन देखेगा।हम दोनों आफिस निकल जाएंगे।आप लोग घर मे चुपचाप क्यों नही बैठते।

रितेश का इतना बोलना ही हुआ था,रीमा रितेश से बोली आप 15 दिन की छुट्टी ले लो,मेरी बहन की 4 महीने बाद शादी है मैं तब छुट्टी लूँगी।

रितेश बोला-मैं भी नही ले सकता,बिट्टू को झूलाघर में छोड़ देंगे।दोनों की आपस मे बहुत किच-किच शुरू हो गयी।सुरेश और सरिताजी वहाँ से उठकर चले गए।

दूसरे दिन सरिताजी हरिद्वार जाने की तैयारी में लग गयी।क्योंकि उनको बिट्टू को संभालने में सारा टाइम चला जाता था।

रीमा ऑफीस जाते जाते बिट्टू को भी तैयार करने लगी।

सरिताजी बोली -बहु बिट्टू को कहाँ ले जा रही हो।रीमा बोली- आप लोग अब हरिद्वार में रहने लगना।यहाँ वापस आने की ज़रूरत नहीं है आप लोगो को।तुम दोनों बुड्डा बुड्ढी के साथ तो हम बच्चा संभालने के लिए रह रहे थे।अगर बिट्टू को झूलाघर में ही रखना है तो आपकी क्या ज़रूरत।

क्यों ज़रूरत नहीं है हमारा घर हैं ये तो।और पापाजी को अच्छी पेंशन भी मिलती है,हम तो यही रहेंगे"तुम दोनों अलग रहने जा सकते हो।तुम कौन होती हो हमें घर से निकलने वाली।सरिताजी बोली।

बस फिर क्या था,अगले ही दिन रीमा और रितेश अलग हो गए।

सुरेशजी और सरिताजी भी शांति से हरिद्वार निकल गए।

अब तिवारी परिवार में दो ही लोग थे।सुरेशजी और सरिताजी।उन दोनों को जहाँ भी घूमना होता था जाते थे।जो खाना होता था खाते थे।

अब तो जैसे दोनों को बहु बेटे की छुट्टी करके आज़ादी सी मिल गयी थी।

आपको ये कहानी कैसी लगी?अपनी प्रतिक्रिया दे🙏

आपकी दोस्त,

@पूनम चौरे उपाध्याय

मौलिक, स्वरचित


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Poonam chourey upadhyay

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    भावपूर्ण कथा

  • Poonam chourey upadhyay · 4 years ago last edited 4 years ago

    धन्यवाद संदीप जी

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