"हम लोग कल सुबह तक मुम्बई पहुँच जाएंगे" सासुमाँ विनिताजी ने अपनी बहू प्रिया से फ़ोन पर कहा।
जैसे ही प्रिया ने फ़ोन रखा, वो अजय पर बहुत जोर से बरस पड़ी "कल तो मम्मीजी पापाजी आ रहे हैं, तुमने बताया भी नहीं?"
"अरे प्रिया, मुझे भी दो दिन पहले ही पता चला कि माँ पापा आ रहे हैं" अजय ने प्रिया से कहा। "मैं तुमको बताने ही वाला था, पर काम के चक्कर में मेरे ध्यान से उतर गया"।
"तुमको पता नहीं है, जब भी वो लोग मुंबई आते हैं तमाशा करके जाते हैं| मुझे हर बात पर रोक टोक करते हैं, मेरे माँ पापा को बुरा भला कहते हैं| उनके आने से हमारी सारी आज़ादी खत्म हो जाती है" प्रिया ने बहुत ही गुस्से वाले अंदाज़ में अजय से कहा।
"प्रिया मुझे भी पता है माँ पिताजी का स्वभाव थोड़ा तेज़ है, पर हैं तो मेरे माँ पिता ही ना" गुस्से में आगबबुली प्रिया को लगातार अजय समझाने की कोशिश कर रहा था।
प्रिया बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी, उसको गलत बातें किसी की सहन नहीं होती थी।बचपन से ही अपनी माँ की इकलौती होने के कारण वो शुरू से ही एक बेटे के जैसे अपने परिवार में पली बड़ी थी, पर गुस्से से प्रिया बहुत तेज़ थी।प्रिया और अजय की शादी को 2 साल ही हुए थे।
आखिर दूसरे दिन विनिताजी और प्रकाशजी भी मुंबई आ ही गए।प्रिया भी उनके लिए जल्दी से ही चाय और नाश्ता लेकर आ गयी।
सब काम खत्म करने के बाद प्रिया को दोपहर में अखबार पढ़ने की आदत थी, प्रिया वहीं सोफे पर बैठकर अख़बार पढ़ने बैठ गयी।
"तुम्हारे माँ बाप ने लगता है तुमको कोई संस्कार नहीं दिए बहु"हम यहां बैठे है, तुमने ना तो हमारे घर आने पर पैर पड़े और बेशर्म जैसे हमारे सामने अख़बार भी पढ़ने बैठ गयीं।प्रकाशजी ने ताना मारते हुए अपनी बहू प्रिया से कहा।
प्रिया ने बिना कुछ जवाब दिए वहाँ से चले जाना ही बेहतर समझा।क्योंकि प्रिया दोंनो का स्वभाव बहुत अच्छे से जानती थी।
रोज़ रोज़ किसी न किसी बात पर किचकिच होती थी।प्रिया का तो मानो एक एक दिन काटना इन लोगों के साथ मुश्किल सा था।
प्रिया ने अपने घर में ऐसा माहौल कभी नहीं देखा था, पर सास ससुर की हरकतें देखकर प्रिया को मन ही मन इनसे चिढ़ होने लग गयी थी।
"हमारा बेटा ऐसा, हमारा बेटा वैसा, तुम हमारे बेटे के पैसों पर ऐश कर रही हो वगरैह वगरैह और भी ना जाने क्या क्या, दिनभर बस ताने ही ताने देते थे"
एक दिन की बात है, प्रिया और अजय को कहीं डिनर के लिए बाहर जाना था।जैसे ही वो तैयार होकर बाहर आई तो विनिताजी बोली, हम दोनों के लिए खाने में क्या बनाया है?
प्रिया कुछ उत्तर ही देती उसके पहले अजय बोला-अरे माँ आपका और पिताजी का खाना रखा हुआ है, लगे तो कुछ गरम बना लेना।
फिर क्या था विनिताजी अजय पर बरस पड़ी-"तू भी अब बहु की तरफ से बोलने लगा, वश में कर लिया इस कलमुंही ने तुझे तो"
प्रिया भी ये सब सुन रही थी, झट से वो भी अंदर आयी, और बोली-आप लोग मुझसे बड़े हो और मैं आप दोनों की इज़्ज़त करती हूं।इसका मतलब ये नहीं कि मुझे बुरा नहीं लगता।
हां तो पापाजी उस दिन आपने ही बोला था ना, कि मेरे माँ बाप ने कोई संस्कार नहीं दिए।
अगर मैं आपको लोगों को पलटकर जवाब नहीं देती तो ये संस्कार तो मेरे माँ बाप ने ही दिए हैं। आप लोग भी कान खोलकर सुन लीजिए, यदि आप लोगों को सम्मान चाहिए तो पहले लोगों का सम्मान करना सीखिए। बहुओं की भी इज़्ज़त कीजिये जैसे आप अपनी बेटी की करते हैं| आखिर हम भी तो किसी की बेटी हैं।
अब क्या था, विनिताजी और प्रकाश जी चेहरा देखने लायक था।
@poonamchoureyupadhyay
मौलिक, स्वरचित
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