पूजा फिर तुम फ़ोन लेकर बैठ गयी"अंश कितनी देर से रो रहा है।पतिदेव पंकज ने जोर से पूजा को आवाज़ लगाई।पूजा बोली-आप देख लो थोड़ी देर अंश को,बच्चा सम्भालने का ठेका मेरा अकेले का ही नहीं है।
अभी 4 साल पहले ही पूजा और पंकज की लव मैरिज हुई थी।2 साल तक तो सब ठीक था।पर ना जाने पंकज,पूजा पर हर बात पर बहुत शक करता था।शक भी कैसा,ऑफिस से आकर फ़ोन चेक करना,किसके कॉल आये,किसके नहीं आये।
पंकज को सिर्फ ये लगता था कि पूजा घर में ही रहे।ना किसी पड़ोसी से बात करे,ना कोई दोस्त से,ना कोई सोशल मिडिया उपयोग करें।मतलब सिर्फ पूजा,पंकज और उसका बच्चा संभाले।
कभी कभी पूजा बोलती भी थी कि दोस्तों के यहां साथ में ही चलते है।तो बोलता वहाँ मेरे दोस्तों से बात करोगी।
कभी पूजा के घर से कोई रिश्तेदार का फ़ोन आ जाये, तोचिल्लाने लगता,और जैसे ही पूजा फ़ोन रखती,तो फ़ोन चेक करता।ये सब आदतों से पूजा बहुत परेशान हो जाती थी।
एक दिन दरवाजे की घंटी बजी,पूजा ने दरवाजा खोला-कोई शादी का कार्ड देने आया था।पूजा ने अंदर बुलाया,बात की और चाय बनाने चली गयी।इतने में पंकज ऑफिस से आ गया।
बस अब क्या था,मेहमान के जाने के बाद पंकज का शक,कौन था,कबसे आये थे,क्यों आये थे,पूजा एक के एक बाद सवालों के उत्तर देती गयी।
रोज़ रोज़ की एक ही चिक-चिक पूजा को परेशान करने लगएक दिन तो हद ही हो गयी।पूजा,पंकज के आने के पहले अपनी बचपन की कोई दोस्त से बात कर रही थी।उसी समय पंकज भी कॉल कर रहा था।पूजा का कॉल बिजी आ रहा था।
शाम को जब पंकज घर आया तो फ़ोन पर चेक करने लगा।लास्ट काल में पूजा की सहेली का ही नंबर था।उसने कॉल लगाया तो सहेली के भाई ने उठाया।पंकज ने आगे उसके भाई से बात भी नहीं की।सीधे फ़ोन कट किया,और पूजा को मारने लगा।उसको लगा कोई लड़के से पूजा बात करती हैं।
"दिनभर लड़को से बाते करती हो"पूजा को समझ नहीं आया कि पंकज सहेली के भाई की बात कर रहाहै।
"अरे आप सुनो तो"पंकज ने पूजा को बहुत मारा और उसकी एक न सुनी।
पूजा ने अब सोच ही लिया कि इस आदमी के साथ उसका गुज़ारा नहीं हो पायेगा।वो अपने घर से जाने की तैयारी करने लगी।
तुम घर छोड़कर नहीं जा सकती"मेरा अधिकार है तुमपर,मैं चाहे तुम्हें मारूँ या पीटू।यहाँ रहना ही पड़ेगा।पंकज बोला।मैंने माना सब अधिकार हैं आपके,पर हर अधिकार मैं आपको दूंगी ये आपने कैसे सोच लिया।आप सब करते हो।दिनभर लोगों को फ़ोन,दोस्तों से बातें,आपके रिश्तेदारों से बातें, यहाँ तक ऑफिस से आकर भी सोशल साइट्स पर बिजी और काम से फुरसत नहीं है आपको।मैं सिर्फ और सिर्फ घर की चार दिवारी में बंद रहूँ और आपकी मार खाऊँ।मुझे नहीं चाहिए ऐसा शकी पति।
बस क्या था पूजा ने अपना बैग उठाया और बच्चे के साथ निकल पड़ी अपनी अगली मंजिल की तरफ।
पूजा को तो जैसे घर की बंद चार दिवारी से आज़ादी मिल ही गयी थी।
दोस्तों ये रचना आपको मेरी कैसी लगी।कृपया कंमेंट करके बताएं।
@पूनम चौरे उपाध्याय
मौलिक, स्वरचित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
1 no.
Thanks indu ji🙏
Please Login or Create a free account to comment.